Friday, May 18, 2007

ये रहे कला के उत्तम नमुने

वड़ोदरा में हंगामे के साथ एक चित्रकार की पेंटींगो को हटा दिया गया. यह कला का गला घोंटना था. मगर अपने पास भी ब्लोग जैसे माध्यम है. तो लिजीये पेश है महान कृतियों मे से दो चित्र.
आप कलाकार है तो आप इसमें छीपी भावना समझ ही जएंगे, तो ताली बजा कर कलाकार का उत्साह बढायें. आप कलाकार नहीं है तो अपने आप को बेवकुफ मत कहलवायीये, साथ साथ तालियाँ बजाईये की क्या महान कलाकारी है.

चित्र एक : कई देवताओं के मुख है, किसका चित्र माने. बाकि कुछ लिख नहीं सकता खुद ही देख लें.




चित्र दो : यह चित्र कहते है दूर्गा का है. मेरी नजर में तो प्रसवपीड़ा से गुजरती महिला का मजाक ही है.



ये चित्र खाश उन लोगो के लिए रखे जिनके अनुसार एक फासिस्ट सरकार द्वारा कला का गला घोंटा जा रहा है. मैं उनसे इस कला को समझना चाहता हूँ.
संजय भाई वो हिन्दी में क्या बोलते है? गरयीयाना मत.

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कोई ना सम्भले तो?

उन्हे जल्दी गुस्सा आता है, मगर कभी किसी पर हाथ नहीं उठाया. यानि बड़े भाई हिंसक नहीं है :)
कल उन्होने लिखा “सम्भल जाओ अविनाश”. और अपने तो मजे लेने लगे. देखने लगे कौन क्या प्रतिक्रिया देता है. पर मजा नहीं आ रहा था.
आज सुबह जागा और सीधे नारद पर गया. देखा, अग्निखोर ने पुछ ही लिया कि नहीं सम्भले तो?
हमारी भी जानने की इच्छा थी की, वर्ना क्या?
तो फोन घुमाया भाई को. ओफिस आ गए थे. मैने कहा कि वो अग्निखोर जानने के लिए जल रहा है की अगला न सम्भला तो क्या कर लोगे?
जवाब मिला, कोई जले या बुझे मुझे जिसे, जो, जैसे कहना था कह दिया. गिरते को सम्भलने के लिए कहा है. नहीं सुनेगा तो उल्टे मुँह गिरेगा. अब सुबह सुबह मुझे कई काम निपटाने है. फोन रखो. सबको जवाब देना ही मेरा काम नहीं है.
जवाब सुन सारा उत्साह ठंडा हो गया.

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Thursday, May 17, 2007

बहसी दरिंदो का देश

अगर उनकी बात सही माने तो भारत में एक ऐसा प्रांत है जहाँ के लोग महा हिंसक प्रवृति के है. सहनशील तो कदापि नहीं. वहाँ का शासक कानून से उपर की कोई चीज है. पुलिस तो आये दिन मासूमो का एनकाउंटर करने की ताक में रहती है. न्यायालय जैसी चीज भी शायद ही हो.
आप कहेंगे ऐसा कौन-सा प्रांत हो गया?
गुजरात.
यहाँ की प्रजा उनकी दृष्टि में शांत, समृद्ध व वेपारी नहीं बल्कि हिंसक व धर्म-जुनूनी है. यहाँ का शासक चुन कर नहीं बल्कि तानाशाही से आया है. भले ही यहाँ के विपरीत अन्य प्रांतो में लोग बुथ-केपचरींग, बन्दूक, शराब या प्रचार में रंडीया नचवा कर जीतते हो.
एनकाउंटर भले ही उत्तरप्रदेश के 172 के मुकाबले 2 ही हुए हो, उनकि दृष्टि में ऐसी बेहसी पुलिस सारे भारत में कहीं नहीं जो अपराधी का एनकाउंटर करती है.

हिन्दूत्व के बहाने गुजरात पर लानते फेंकने वालो कहीं इसके पीछे यह दर्द तो नहीं की अपनी जनता तो जिस विचारधारा के बल पर स्वर्ग उतार देने का स्वप्न दिखाया था, वह पूरी दुनिया में पीट चुकी है, और अब अपने ही लोगो पर गोलियाँ चलाने की नोबत आ गई है. रोटी के लिए लोगो को बरगला कर बन्दूकें थमाने वालो, किस मुहँ से हिंसा का विरोध करते हो?
दोस्तो गुजरात कोई अनोखा नहीं है. यहाँ भी उतने ही बेईमान होंगे जितने अन्य भारतीय, इतने ही हिंसक होंगे जितने अन्य भारतीय, उतनी ही भावनाएं आहत होती होगी जितनी अन्य भारतीयों की. फिर निशाना क्यों ताका जाता है. अगर यहाँ लाल झण्डे की दाल नहीं गलती तो उन्हे खुद सोचना है की ऐसा क्यों हो रहा है?

सिख गुजरात में उपद्रव नहीं कर रहे. प्रेस गुजरात में नहीं जलाई गई. वैसे ही दंगो का इतिहास भी अखिल भारतीय है.

अंत में बता दूं यह कोई विचार नहीं है. कोई बात नहीं है, यह तो किसी के अनुसार लात है. क्योंकि सोचने समझने की क्षमता तो प्रभु ने उन्हे ही दी है.

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Monday, May 7, 2007

जो सरे-बजार पुछा आपने

बापू माफ करना मगर जब सरे-बजार पुछ ही लिया है तो बताना ही पड़ेगा। वरना इस प्रकार के फसाद में कौन पड़े.?

भाई बजारवाले, आपने जो टिप्पणीयाँ दी है उसमें आपने मेरे नाम का सन्धि-विच्छेद कमाल का किया है। नटराज को नट बना दिया। मगर यह केवल आपकी दुषीत मानसिकता ही दर्शाता है, जब और कुछ न बन सके तो विभिन्न प्रकार की मुखाकृतियाँ बना कर खिजाओ और मजे लो, नाम बिगाड़ना भी इनमें से एक है। जैसे आपको बजारवाला न कह कर बाजारू कहूँ, मगर मैं गिरा हुआ इंसान नहीं हूँ, इसलिए ऐसा नहीं कहूँगा।

आपने आगे लिखा है


अब रेल गाड़िया तो गुजरात में भी जलाई जाती है और लोग वहाँ भी मारे जाते हैं
.. अंतर इतना ही है की एक रोटी के लिए करता है और दूसरा धर्म के लिए , लगता है आपको
रोटी की ज़रूरत नही ..



क्या कमाल की बात लाएं है!! रोटी की भला किसे जरूरत नहीं होगी? सभी को है। मगर क्या सभी हिंसक रास्ते से रोटी का जुगाड़ करते है? रेले जला कर रोटी कमाने का समर्थन आप जैसे प्रखर बुद्धी वाले लोग ही कर सकते है, जिनके लिए सत्ता ही नहीं रोटी भी बन्दूक की नोक से निकलती है। हम तो मेहनत कर कमाते-खाते है।

फिर आप लिखते है

लगता है कि शाखा वालो से आपको काफ़ी प्यार है नट राज जी महाराज

ना भाई ऐसा कोई प्यार नहीं उमड़ रहा, मगर जब मल्बे में दबे पड़े थे, जो हाथ सबसे पहले सहायता के लिए आया था, वह एक खाकी पेंट वाले का था। देश की अर्थव्यवस्था को पंक्चर करने पर उतारू लाल झण्डे या सेवादल (कौन है, यह?) वाले कहीं आस-पास भी दिखे नहीं.. तो थोड़ी बहुत सहानुभूति तो होनी स्वभाविक ही है ना।

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Sunday, May 6, 2007

दारूबन्दी होगी हल्की

गुजरात में दारूबन्दी है, आपको कहीं भी दारू की दुकान नहीं दिखेगी। मगर अब कुछ छुट-छाट देनी की कोशिशे हो रही है। वैसे तो कहते है यहाँ माँगो उतनी मिलती है, मगर आम आदमी को पीनी हो तो कहाँ से खोजता फिरे? तो उसके पास एक ही रास्ता बचता है कि वह गाँधी बापू को कोसे न गाँधी गुजरात के होते न यहाँ दारू बन्दी होती। मगर लगता है, नियमो को कुछ हल्का किया जाएगा, जैसे अब डॉक्टर भी सर्टीफिकेट दे सकेंगे की मरीज के लिए स्वस्थ रहने के लिए दारू पीनी जरूरी है. और मरीज बे रोक टोक यम यम यम.... :)

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