Friday, March 27, 2009

कथित धर्मनिरपेक्षता की विडंबनाएं

वरुण गांधी के प्रति भारतीय सेकुलर सत्ता का जो व्यवहार रहा है, वह उसके अंतर्मन के हिंदू द्वेषी चरित्र को ही उद्घाटित करता है. जो निर्वाचन आयोग शहाबुद्दीन, लालू प्रसाद और आजम खां जैसे विभिन्न अपराधों के आरोपी तथा हिंदुओं के विरूद्ध विषवमन करने वाले लोगों के बारे में कभी सक्रिय नहीं हुआ और जिसने यह भी नहीं देखा कि कोयंबटूर बम धमाकों का मुख्य आरोपी मदनी न सिर्फ़ जेल से चुनाव लड़ा, बल्कि आज वह केरल की माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की चुनावी राजनीति का संचालनकत्त्रा दिख रहा है. फ़ारूख अब्दुल्ला ने सार्वजनिक बयान दिया कि अगर अफ़जल को फ़ांसी दी गयी, तो मुल्क में आग लग जायेगी. अब्दुल रहमान अंतुले ने तो कसाब के मामले पर भारतीय शहीदों का अपमान किया, पाकिस्तान की भाषा बोली. फ़िर भी राहुल और प्रियंका की कांग्रेस ने न उस समय गीता पढ़ी न बाइबल और न ही अपने राज धर्म का किसी भारतीय विद्वान से ज्ञान प्राप्त किया. नतीजा यह निकला कि अंतुले से मंत्री पद वापस नहीं लिया गया.

केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह ने बाटला हाउस प्रकरण में शहीद मोहनचंद शर्मा का अपमान कर आतंकवादियों के अदालती खर्च के लिए पैसा देने वाले उपकुलपति को समर्थन दिया और उन्हें देश के 16 अन्य उपकुलपति चुनने वाली समिति का संयोजक बना दिया. ऐसे सेकुलरों और उसी रंग वाले चुनाव आयोग ने वरुण गांधी के बारे में भाजपा को यह सलाह देने की जरूरत समझी की पार्टी वरुण गांधी को टिकट न दें. ओखर वरुण गांधी का अपराध क्या था? उन्होंने हिंदुओं की दीन-हीन दशा देखकर उनमें साहस भरने तथा उन्हें यह अहसास दिलाने का प्रयाास किया कि वे अकेले नहीं हैं और गांधी परिवार का एक वंशज हिंदुत्व पर स्वाभिमान हृदय में धारण किये उनके साथ खड़ा है. वरुण को न मूल सीडी सुनायी गयी न सफ़ाई का मौका दिया गया. बल्कि सेकुलर मीडिया और 10 जनपथ के दबाव में फ़ैसला कर दिया गया.

वरुण गांधी नेहरू खानदान में ऐसे पहले व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने हिंदू धर्म के प्रति अपने स्वाभिमान को सार्वजनिक रूप से प्रकट किया है. अभी तक भारतीय राजनीति में गांधी-नेहरू परिवार हिंदुत्व के समर्थकों पर कटुतम आघात करने के लिए जाना जाता रहा है.वरुण गांधी के समान ही गांधी-नेहरू वंश के उत्तराधिकारी है, राहुल गांधी. क्या कोई राहुल गांधी से यह अपेक्षा कर सकता है कि वह हिंदू धर्म, सभ्यता एवं संस्कृति के समर्थन में एक वाक्य भी कह सकें? मूल बात तो यह है कि उन्हें हिंदू धर्म और संस्कृति की जानकारी होगी, इसमें भी संदेह है. रामायण या महाभारत के बारे में उन्होंने कुछ अंगरेजी में ही पढ़ा होगा? क्या उन्हें जानकारी होगी कि हिंदुओं ने पिछली शताब्दियों में कितने संघषाब और अत्याचारों से गुजरते हुए अपने धर्म और जीवन शैली को बचाये रखने में सफ़लता पायी है और अब जब माना जाता है कि वे स्वतंत्र हैं, राहुल की पार्टी के नेतृत्व में उन्हीं हिंदुओं की आस्था और संवेदनाओं पर तीव्र आघात किये जा रहे हैं. यह है नेहरू और इंदिरा के दो प्रपौत्रों और पौत्रों में फ़र्क. एक भारत के साथ खड़ा है, दूसरा भारत को जानता नहीं है.

भारतीय राजनीति में आज हिंदुत्व का समर्थन जिस गति से बढ़ा है, उसे देखते हुए सेकुलर तत्वों का विरोध और धनीभूत होता गया है. आज सार्वजनिक जीवन में हिंदुत्व के प्रति दुराग्रह घटा है और मीडिया तथा अन्य क्षेत्रों में भी हिंदुत्व का समर्थन अब स्वीकार्य होने लगा है. इस स्थिति में यह आश्चर्य नहीं है कि आम जनता में वरुण गांधी का समर्थन तीव्रता से बढ़ा दिखता है.ओखरकार हिंदू केवल अपनी संवेदनाओं और प्रतीकों के प्रति तनिक सम्मान ही तो मांगते हैं. इस सरकार तथा सेकुलर तत्वों ने प्रचलित सेकुलरवाद का अर्थ सर्वपंथ समभाव के बजाय प्रकट हिंदू विद्वेष को बना दिया है, जिसकी हिंदू समाज में तीव्र प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नये सरसंघचालक मोहन राव भागवत ने भी स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए स्पष्ट कहा कि हिंदुत्व के प्रति वे तनिक भी समझौता नहीं करेंगे. हिंदुत्व समर्थकों के कारण भारत के शेष सभी मतावलंबियों को वैचारिक स्वतंत्रता का वातावरण प्राप्त हुआ है, परंतु यह बना रहे इसके लिए जरूरी है कि इस वैचारिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने वाले हिंदू समाज की भी सुरक्षा हो और उसके सम्मान को ठेस न पहुंचे. इस परिस्थिति में आने वाले चुनावों तथा राजनीति का विॐेषण ज री है. इस परिस्थिति को बदलने के लिए सभी राजनीतिक दलों में सक्रिय नेताओं को सोचना होगा कि उनकी राजनीति का उद्देश्य क्या है? सिर्फ़ पैसा कमाना, ऐश करना और मर जाना या कुछ देश के लिए ऐसा भी करके जाना ताकि आने वाली पीढ़ियां उनको सिर्फ़ उनकी दौलत या मंत्री पद के लिए नहीं, बल्कि इसलिए याद करें कि उन्होंने देश और धर्म की मूल पहचान की रक्षा के लिए तन-मन-धन अर्पित कर दिया था.

पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान से छह हजार हिंदू जान और इज्जत बचाकर भारत आये हैं. इन परिवारों की आप बीती रोंगटे खड़ी करती है. यह बात यहां का कोई राजनीतिक दल समझ सकेगा? पाकिस्तानी हिंदुओें की जो पीढ़ी भारत आयी है, वह भारत से उतने ही अजनबी है, जितनी वह बांग्लादेश या इंग्लैंड से होगी. वे भारत इसलिए आते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यहां उन्हें सुरक्षा मिलेगी. इस पृथ्वी पर कहीं भी कभी भी यदि हिंदुओं को कोई कष्ट होता है, तो वे भारत माता की गोद आ दुबकते हैं. चाहे उनका पासपोर्ट किसी भी देश का क्यों न हों. पर उन चैनलों और मीडिया के अन्य साधनों के लिए पाकिस्तानी हिंदुओं की व्यथा- कथा और रूदन महत्वहीन ही रही, जिन्होंने मेंगलुरू में एक पब की घटना को दुनिया भर में हिंदुओं का चेहरा विकृत दिखाने के लिए तूफ़ान की तरह फ़ैला दिया था.

पिछले दिनों पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ़ भारत आये थे. एक साहसी पत्रकार प्रेरणा कौल ने मुशर्रफ़ से पूछा- मैं कश्मीरी पंडित हूं, मेरा घर श्रीनगर में है. लेकिन मैं अपने घर नहीं जा सकती, होटल में रूकना पड़ता है. आप बता सकेंगे कि क्या हम वहां लौट सकेंगे? मुशर्रफ़ एक क्षण को सन्नाटे में आ गये. प्रेरणा कौल के सवाल का जवाब भारत को भी देना होगा. वे लोग जो चुनाव लड़ रहे हैं, वे जब भारत में ही हिंदुओं की रक्षा नहीं कर पाते और बेघर कर दिये गये हिंदुओं को अपने ही देश में अपने घर नहीं लौटा पा रहे हैं, तो उनसे पाकिस्तान या बांग्लादेश में हिंदुओं को बचाने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

 

(लेखक : तरुण विजय

 

साभार : प्रभात खबर

 

कड़ी : http://www.prabhatkhabar.com/news/4113.aspx )

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