Saturday, June 20, 2009

इन्हे भी सम्मन भिजवाईये माननीय दिनएश रॉय द्विवेदी ...

अरूण जी तो आपकी सिरफ़िरे वकीलों की सम्मन वाली लगातार आ रही मेलो से तंग आकर अपना ब्लोग मिटा कर चल दिये .आपके चेलो ने टिप्पणी भी की, की आपकी चिरकुट मंडली से घबरा कर टाप टेन ब्लोगर अपना ब्लाग डीलीट करने लगे है.लेकिन हम आपको बता दे कि अरूण जी ना तो घबराये थे ना ही डरे थे. अरूणजी तो देखने में लगे थे कि जब कोई आदमी वकालत पास कर लेता है तो उसके अंदर इन्सानियत कितनी समाप्त हो जाती है. अपने अलावा वो किसी की सुनने को राजी होता भी है या सिर्फ़ अपनी ही सुनाता है. या धमकियाँ देने और उट पंटाग केसो मे उलझाने जैसी निचली और टुच्ची बातों पर उतर आता है. अरूण जी ने मुझे बताया था उन्होने ब्लोग डीलीट आपकी आत्म संतुष्टि के लिये किया था ताकि आप तन और मन से स्वस्थ बने रहे. अगर आप हम सब के ब्लोग जगत से हट जाने पर ही स्वस्थ हो सकते हो तो आप स्वस्थ रहे हम भी अपना ब्लोग हटा लेगे. हम लोगो का क्या है हमतो ब्लोगजगत में बिना राय दिये बिना लोगो को धमकी दिये भी स्वस्थ ही रहते है. दर असल अरूण जी पता नही था कि वकील लोग बिना राय दिये बिना कोर्ट कचहरी की धमकी दिये स्वस्थ नही रह सकते :) ये उन्हे और हमे भी आपसे ही पता चला इसके लिये धन्यवाद. अरूण जी को पहले से पता नही था वरना हम आपके खंबा नोचने से पहले ही ये काम कर देते. वैसे मै अरूण जी को जितना जानता हूँ वो दिखने में जरूर शकल से नही दिखते पर है, दयालु और बेवकूफ़ किस्म के आदमी. अरूण जी तो बिना किसी से मिले उसके काम आ सकते हो तो आ जाते है लेकिन आपसे तो वो मिल भी चुके थे. अगर आप अरूण जी बता देते कि आप ब्लोगजगत से हट जाओ तो वो वैसे भी हट ही जाते. हम आपकी दुविधा अब समझते है उधर सुरेश जी कसाब और काजिम के विरुद्ध लोगो का गुस्सा भडका रहे थे इधर अरूण जी. आपने कसाब और काजिम के हितों के लिये ब्लोगजगत मे कपिल जी काशिफ़ जी के साथ मिल कर मुहिम चलाई हुई है और अरूण जी वेदो मे क्या है , ना आप और काशिफ़ जी से समझना चाहते थे ,ना ही कपिल जी के कश्मीर से सेना हटाने की मुहिम मे शामिल हो सकते थे. अरूण जी मान रहे थे कि आप उनके ब्लोग पर तथा बिना किसी कारण के भी उन्हे दस हजार सम्मन भिजवा सकते थे लेकिन ब्लोग डीलीट उन्होने आपकी आत्म संतुष्टी के लिये किया था . सुरेश जी के पीछे आप जमाने से पडे है. कभी धनात्मक तो कभी कोई और राय. अब अरूण जी के पीछे पड गये थे .यानी या तो आपकी राय मानो या फ़िर कोर्ट मे आने की धमकी झेलो . मुझे नही लगता अरूण जी ने तो कुछ ऐसा नही कहा था वकीलो के बारे मे जो आप और आपके चेले उन्हे धमकात्मक राय देने पीछे पड गये श्रीमान .वैसे आप कितने महान है ? आपकी महानता की महिमा हमे जगह जगह दिखाई दे रही है. आप उन्हे गड्ढे मे से निकालने वाले भी बन रहे है पर उससे पहले उन्हे इस ( कोर्ट के चक्कर मे ) गड्ढे मे डालने की कोशिशो मे भी आप ही संलग्न दिख रहे है.

अपकी जानकारी के लिये ब्लोग पर वकीलो की ऐसी तैसी करती ये पोस्ट मै यहाँ फ़िर से पोस्ट कर रहा हूँ श्रीमान .इस की कुछ नाक कान टांग उखाड कर दिखायेगा और नही कर पाये तो झोला उठाकर चलते बनियेगा . बंदानवाज या सिर्फ़ आपकी धमकिया जो आपकी इज्जत कर रहे हो उन्ही के लिये है क्या? .यहाँ वकीलो की इतनी धज्जिया उखेडी गई है जितनी अरूण जी ने कभी की ही नही . सो अब किसीको मिर्ची लगे तो हम कुछ नही कर सकते :) वैसे आप यहाँ भी देख सकते है एक और पाकिस्तानी को वकील नही मिला है आप चाहे तो किसी को भेज सकते हैं, कसाब को नही तो दूसरे एक पाकिस्तानी आतंकवादी को बचाने की हसरत तो पूरी हो ही जायेगी.
यहाँ मथुरा के वकीलो ने देश प्रेम दिखा दिया है आपके वाला नही सच्चा देश प्रेम.

वैसे वकील कैसे होते है आप यहाँ भी ज्ञान अर्जन कर सकते है

वकील: नोटवर्किंग की कील

खास फीचर | द्वारा/by : अविनाश वाचस्‍पति | सोमवार , 23 जून 2008

काली करतूतों को सफेद कारनामा बनाने के लिए काले कोट वाले ही काम आते हैं। जिन्‍हें आप, हम और सब वकील के नाम से जानते हैं और वकील न ठोंके कील, हो नहीं सकता। काले कोट वालों की कीलियां करतूतें आज जगजाहिर हैं। इनकी कीलों की महिमा अपरंपार है। इन्‍हें देख सह कर भी अनदेखा अमहसूसा करने से ही समस्‍याओं से छुटकारा मिलता है। इन्‍हें रामबाण तो नहीं, हां वकीलबाण कहने में कोई बुराई नहीं है।

कीलें वही आहृलादकारी जो वकील चुभोते हैं। वकील की कील नेस्‍तनाबूद कर डालती है परन्‍तु अपने होने का रंच मात्र भी अहसास होने नहीं देती है। कोर्ट के दरवाजे के बाहर पेड़ों के नीचे इनके झुरमुट बगुला भगत की तरह ध्‍यान लगाए रहते है कि कोई उधर टपके तो उसको लपकें । शादी करानी हो या तलाक, मर्डर करके आए हो या करने जा रहे हों, पड़ोसी को हैरान करना हो या किसी खानदानी विवाद को निर्विवाद करना हो अथवा दूसरे के फंटे में टांग अड़ानी घुसानी हो , जरिया जनहित याचिकाएं.... वकील अपनी सेवाएं लिए हमेशा मुस्‍तैद मिलते हैं।

वैसे ऐसा भी नहीं है कि वकील सिर्फ कील ही चुभोते हैं। ये फांसें भी निकालते हैं । फांसें का मतलब फंसे हुए भी हो सकता है और बांस की जो महीन सी बांसीय तार का छोटा सा पीस शरीर के किसी भी अंग में कहीं भी समा जाती है और शरीर को भरपूर टीस देता है, उससे भी छुटकारा दिलाते है। फांसे का अर्थ फंसे हुए में लेने पर बोध होता है कि इनकी विरल माया फांसी के फंदे तक से छुड़ा लाने के लिए भी ख्‍यात होती है और इसी के चलते इन पर नोटों की जो बरसात होती है, उसके लिए सावन की जरूरत भी नहीं है, वो बरसात भूमि पर और इसके गर्भ में मौजूद यथा सागरीय जल के माफिक होती है जो कभी चुकती नहीं है और सदैव बरसती रहती है। इसमें आई सुनामी इनकी लॉ की लोकधुन को ला धन की गरिमा प्रदान करती है। नोटवर्किंग के बेशुमार द्वार ओपन करती है। लोग घर बार , गहने , भूमि सब कुछ बेचकर भी इनके काले कोट की जेबें अपने सफेद काले नोटों से भरते रहते हैं। फिर भी इनके बैंक खातों पर कोई रंग
नहीं चढ़ता और वे झकाझक सफेद ही रहते हैं। जब तक नोट देने वाले के पास होते हैं , धवल होते हैं परन्‍तु वकीलों के काले कोट की जेब में जाते ही स्‍याह हो जाते हैं। पर नजर सफेद ही आते हैं। आपने शायद ही सुना हो कि वकील को दी गई फीस की रसीद मिली हो या उस पर किसी तरह के टैक्‍स से राहत।

मुजरिम ही नहीं, निर्दोष भी इनके चंगुल में गुल हो जाते हैं क्‍योंकि अपनी निर्दोषता को साबित करने के लिए भी ये ही एकमात्र अवलंब होते हैं, इनके जाल में जो भी उलझा, उसे बाकी उलझनों से मुक्ति मिल जाती है। जब तक सांस है तब तक आस वाली उक्ति यहीं पर सटीक बैठती है। अपने जीवन भर की पूंजी दांव पर लगाकर मुजरिम अपने बचने के उपक्रम वकीलों के सहयोग से अनवरत करता रहता है। तो उधर सभ्‍य जन जो पुलिसिया उपक्रम इत्‍यादि के तहत फांसे गए होते हैं, अपने बचाव के लिए इन्‍हीं की शरण में जाते हैं, वे खुद तो बच जाते हैं पर सब कुछ लुटा बैठते हैं और फिर यही सब्र कर लेते हैं कि चलो जान बची तो लाखों पाए जबकि यहां पर लाखों के निवेश पर जान का डिवीडेंड मिलता है।

आप एक बार इनसे मिल भर लें, आपने सिर्फ मिलना है भरवा तो ये आपसे लेंगे ही, कभी कागज के नाम पर, कभी स्‍टांप के नाम पर, कभी फोटोस्‍टेट , कभी टाइपिंग और कभी किसी और कभी किसी, आप इनकी नोटवर्किंग में एक बार फंस कर तो देखिए, आपको नेटवर्किंग की तुच्‍छता का अहसास अपने आप हो जाएगा और इतने विरल अनुभव होंगे कि मैं तो एक लेख लिख रहा हूं आप एक पूरी पुस्‍तक नॉनस्‍टाप लिख जाएंगे, मानो भारत की राजधानी के दक्षिण में चालू हुई बहुचर्चित बीआरटी कॉरीडोर में बस की तरह बेलगाम बढ़ते चले जा रहे हैं।

इनके धन जुगाड़ने के नायाब तरीके हैरतअंगेज होते हैं। इस पर भी तुर्रा ये कि नोटों की गर्मी का इन्‍हें अहसास तक नहीं होता। कितने ही नोट बटोर लें पर इनके चैम्‍बरों में हीटर चलते मिलेंगे। नोटों की गर्मी इनके दिमाग में भी नहीं चढ़ती है। चाहे कितनी ही गर्मियां हों इनके झूठ बोलते समय आप पसीने की एक बूंद तक नहीं तलाश पाएंगे। झूठमर्मज्ञता में महारत हासिल ये कूल बने रहते हैं। मानो वकीलों की यह मदमस्‍त कौम सृष्टिरचयिता द्वारा सदैव ठंडी रहने के लिए ही अस्तित्‍व में लाई गई हो जबकि इनका संग इनके मुवक्किलों की जेबें बड़ी ही चतुराई से ठंडी करता रहता है। फिर चाहे कड़ाके की सर्दी ही क्‍यों न पड़ रही हो , मुवक्किल को इस सर्दी में भी आनंददायक गरमाहट की असीम अनुभूति होती है।

समझदार लोग तो वकील से संपर्क करने के बाद ही जुर्म को अंजाम देते हैं और मुजरिम की सम्‍मानोपाधि से भी वंचित बने रहते हैं । इनकी संगत की रंगत में आपके ज्ञानचक्षु भव्‍य दिव्‍यता पायेंगे कि इस मार्ग से होकर आप अपनी करतूतों को अमली जामा पहनाएंगे तो कानून आपको छू भर भी नहीं पाएगा और आप साफ बेदाग बच जाएंगे। पर उन दागों से बचने के लिए दाम भरपूर वसूले जाते हैं। इनके आगे तो पुलिस की मिलीभगतीय करतूतें भी बौनी साबित हो रही हैं। जबकि मुजरिमों को बचाने के लिए पुलिस कौम गजब की कुख्‍याति दिन सोलह गुनी रात चौंसठ गुनी अर्जित कर रही है। उनसे मिलजुलकर जुर्म किए जाते हैं ।

आपने खूब सुना होगा कि इस सांठ गांठ की गांठ बहुत कमजोर होती है, पुलिस की कलई भी खुल जाती है और पुलिस भी फंस जाती है। कभी आपने सुना है कि कभी कोई वकील अपने मु‍वक्किल को बचाते हुए खुद फंसा हो, जिस पर जग हंसा हो। मुजरिम बचे ना बचे, इन्‍हें कोई फंसा नहीं सकता। कानून की किताबों के कीड़े ऐसे ऐसे पेंच निकाल लाते हैं कि मुजरिम तो मुजरिम जज भी इनके मुरीद हो जाते हैं। उनको अपना मुरीद बनाने के लिए कुछ दाम भी लग जाएं तो क्‍या दुख, आखिर दाम में ही है दम। वकीलों द्वारा जजों को अपने मोहपाश में जकड़ने के किस्‍सों का खुलासा समय समय पर होता रहता है। आज के वकीलों में ही भविष्‍य का जज मौजूद होता है।

आपने कभी नहीं सुना होगा कि वकील रिश्‍वत लेते धरा गया जबकि जज धर लिए जाते हैं। इसका सीधा सा कारण है कि इनको चढ़ाए गए चढ़ावे को रिश्‍वत और घूस कतई नहीं कहा जा सकता। वकीलों को मिलते ही यह फीस हो जाती है और फीस लेना तो जायज होता है। वो बात दीगर है कि अब घूस देने को कानून सम्‍मत बनाने के लिए इस देश में प्रयास किए जा रहे हैं। अगर इन भगीरथी प्रयासों से वकीलों को जोड़ लिया गया होता तो अब तक तो सफलता मिले भी अरसा हो गया होता। ये चाहते तो उस पर टैक्‍स भरवा कर उसे कानूनी जामा भी पहनवा देते और एक बार कानूनी बन जाने पर उस टैक्‍स से बचने का तोड़ भी यही बतलाते। गजब के तिकड़मी होते हैं वकील। आप चाहे जीतें, चाहे हारें, चाहे सुलह करें पर इनकी विजय पताका वकीलों की ही फहराती है। यह जीतकर भी कभी फूलों के हार नहीं पहनते और फूल बनाते हैं। यह कहना भी समीचीन होगा कि इसलिए इन पर नोटों के फूल सदा बरस बरस का अपनी सुगंध बिखेरते रहते हैं

विश्‍व विजयी वकील हमारा।
नोटवर्किंग का दिखाये अदृभुत नजारा।

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Thursday, June 11, 2009

हिन्दी समर्थित मोबाइल

ये रहे वे मोवाइल फोन जो हिन्दी लिपि का समर्थन करते है. यह सूची यहाँ से प्राप्त की है, तथा बताने के लिए आलोक का आभार।

  • LG B2050
  • LG KG110
  • LG KG195
  • LG KG200
  • LG KG271/KG276/MG161B
  • LG KG300
  • Nokia 2610
  • Nokia 2626
  • Nokia 2630
  • Nokia 2650
  • Nokia 2760
  • Nokia 3110 Classic
  • Nokia 3500 Classic
  • Nokia 5070
  • Nokia 5200
  • Nokia 5300
  • Nokia 6021
  • Nokia 6030
  • Nokia 6070
  • Nokia 6080
  • Nokia 6101
  • Nokia 6230
  • Nokia 6230i
  • Nokia 6233
  • Nokia 6270
  • Nokia 6280
  • Nokia 6300
  • Nokia 7260
  • Nokia N95
  • Sony Ericsson J230c/J230i
  • Sony Ericsson J300i
  • Sony Ericsson K508i
  • Sony Ericsson K510c/K510i
  • Sony Ericsson K550c/K550i
  • Sony Ericsson K790c/K790i
  • Sony Ericsson T290c/T290i
  • Sony Ericsson W200c/W200i
  • Sony Ericsson W580c/W580i
  • Sony Ericsson Z530c/Z530i

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Tuesday, June 9, 2009

वकील ले लिए न्याय क्या है?

पंगेबाज ने माफी माँग ली, मगर एक आम भारतीय को ये सवाल अभी भी खाये जा रहें हैं। पंगेबाज के चिट्ठे पर आई टिप्पणियाँ यही साबित करती थी। मगर उन्होने अपना लेख हटा कर बहुत सारे लोगो का दिल दुखाया है। मैं यहाँ इस लेख को फिर से पोस्ट कर रहा हूँ। यह एक भारतीय का दूख है। मैं जानता हूँ कोई केस करेगा तो मेरे लिए किसी वकील को 2500 दैनिक की फीस देने वाला कोई नहीं होगा, कोई मानवाधिकारवादी नहीं रोएगा, कोई मोटी बिन्दी हाय हाय नहीं करेगी. मैं भारतीयों का खून बहाने वाला नहीं हूँ ना.

यह था पंगेबाज का लेख:
कालेज हम कभी गये नही , स्कूल जाने के दिनो मे अकसर स्कूल के पीछे पराठे खाते जरूर पकडे जाते थे. सो हमे आप कतई गवार, अनपढ, जाहिल, खरदिमाग बेअकलो की श्रेणी मे रख सकते है. लेकिन जनाब हमारी इस तुच्छ मोटी बुद्धी मे पिछले दिनो ब्लोग पढ कर कुछ सवाल गूंज रहे है .जिनका जवाब तलाशने मे पिछले दिनो हम बिलकुल नाकाम रहे.

सो आप बुद्धीमान लोगो के सामने मै ये अपने सवाल रख रहा हू . कृपया मेरी शंका का निवारण करे.

पिछले दिनो कुछ ब्लोगर्स ने मुंबई ताज घूमने आये महान पाक नागरिक (भारतीय नागरिको के अनुसार मुंबई हमलों के मुख्य आरोपी) मासूम * मोहम्मद अजमल आमिर कसाब और उनके कुल जमा १६६ हत्याओ के छोटे से कुकर्मो के साथ उनके वकील की हर जायज नाजायज चालो को को न्यायोचित ठहराने मे लगे हुये थे. . महान दाऊद भाई के खासमखास वकील अब्बास काजमी, जिनका कहना था कि इस केस में जीत बेहद मुश्किल है, लेकिन मैं न्यायालय ** मे कसाब को बचाने की हर मुमकिन कोशिश करूंगा. काजमी जी ने माना था कि- कसाब के खिलाफ
काफी सबूत हैं। लेकिन वो उन्हे झुठलाने की पूरी इमानादारी से कोशिश करेगे . हम सब ये देख भी रहे है कि वो लगातार उसे इस बारे मे ज्ञान दे भी रहे है . जिसके चलते कसाब कभी अपनी उम्र कम बताने की कस्मे खा लेता है कभी उसे उर्दू के अलावा कुछ समझ नही आता कभी उसे अखबार चाहिये होता है. यानी वकील *** साहब अपने धंधे के प्रति पूरी इमानदारी दिखाते हुये उसे मुकदमे को लंबा खीचने की हर मुमकिन कोशिश करने मे लगे है . इस सारे न्याय के खेल मे वकील के हिसाब से न्याय उसके मुवक्किल के हित के अलावा कुछ नही होता . ऐसा हमारे एक ब्लोगर वकील साहब का भी कहना है.यानी उसके द्वारा मारे गये लोगो के प्रति उसके वकील की कोई जिम्मेदारी नही होती . यही है न्याय की परिभाषा हमारे ब्लोगर वकील मित्र के हिसाब से .

यानी किसी के भी मानवाधिकार की ऐसी तैसी करदो फ़िर एक अच्छा वकील पकडो जो आपके मानवाधिकार के लिये न्यायालय मे न्याय की मांग करेगा . जिनके खिलाफ़ आपके अपराध किया है उन्हे झूठा ठहरायेगा. और आपको दुबारा वही सब करने के लिये न्याय दिलवायेगा . मुझे तो हसी आ रही है आपका पता नही . साहब आपकी बात से तो हमे यही समझ मे आता है कि नन्दा केस मे आई यू खान और आर के आनन्द भी अपने मुवक्किल के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे .आखिर येन केन प्रकारेण उन्हे अपने मुवक्किल को निर्दोष साबित कराने की हर मुमकिन कोशिश मे लगे हुये थे , अपने काम के प्रति पूरी इमानदारी से लगे हुये थे . यानी उन के साथ जो कोर्ट ने किया वो सरासर गलत था ? या फ़िर आप यह कहना चाह रहे है कि वो अपने मुवक्किल के प्रति पूरी इमानदारी से कार्य तो सही कर रहे थे .लेकिन पकडॆ नही जाना चाहिये था . इससे हमे यही समझ मे आता है की अपराध करना कतई बुरा नही है . पकडे जाना बुरा है यही है जाने माने वकीलो की दूर्ष्टी मे न्याय . अब यही वकील साहब कुछ परिक्षाये पास कर न्यायाधीश बन जाते है सो न्याय के बारे मे न्यायालय के बाये मे आप सब अपनी राय बदल ही ले तो बढिया .

जैसे की देश के और लाखो केसो मे नही पकडे जाते . बाकी जो मरे उनके साथ हुये न्याय या अन्याय से बचाव पक्ष का कोई लेना देना नही होता. शायद आप वकील लोग की सोच यही बनाई जाती होगी पढाई के दिनो मे . आपको सच क्या है ? इससे कोई लेना देना नही . जिससे आपको पैसे मिले वो बलातकारी सही ,गुंडा सही ,डकैत सही, पर आपको उसे न्याय के नाम पर कोई भी दंद फ़ंद कर गवाहो को तोड उन्हे इस हद तक दुखी करे कि वो उस केस से या तो हट जाये या फ़िर आपके हिसाब से गवाही देदे , और आप उसे बाईज्जत निर्दोष साबित करदे . क्या वकालत पढते पढते लोगो की अंतराआत्मा साथ छॊड जाती है ?

तभी वकील साह्ब बलातकार की शिकार महिला को अपने बलातकारी मुवक्किल के फ़ेवर मे बदचलन साबित करने और भद्दे सवाल पूछने मे लग जाते है ? जरा सोचिये उस जगह किसी दिन आपके परिवार का कोई सदस्य हो , क्या तब भी आप उस बलातकारी गुंडे डकैत की तरफ़दारी करगे . जब आपका ही कोई सहयोगी आपके दर्द मे भागी दार बनने के बजाय आपके दर्द् की बखिया उधेड रहा होगा तब आपको कैसा लगेगा बंधु ? सोचियेगा ? अगर कही आपकी अंतरात्मा भी जिंदा बची हुई हो तो ? वरना लगे रहिये अपने धत कर्मो के बोझ से उसे दबाकर मारने मे
खैर छोडिये ये सब . मै आपको एक बात बताना भूल गया . अगर कोई गरीब बंदा बेचारा वक्त का मारा गरीब आदमी किसी गुनाह मे . कही झगडा कर बैठा .किसी को गुस्से मे हसिया उठाकर फ़ेक कर मार दिया . और न्यायालय मे अपने बचाव के लिये कोई वकील खडा नही कर पाया तो न्यायालय उसके पक्ष को प्रस्तुत करने के लिये एक वकील मुहैया कराता है जिसे पूरा मुकदमा लडने के लिये ९०० रुपये सरकार की और से दिये जाते है.

अब ये बात जज साहब भी जानते है कि ९०० रुपये मे नंगा नहायेगा क्या निचोडेगा क्या ? लेकिन एक गरीब गुर्गे भारतीय नागरिक की क्या औकात जो उसके बारे मे किसी को कुछ सोचने की फ़ुरसत हो ? क्या आपको पता है कि भारतीय जेलो मे बंद आधे से ज्यादा लोग ऐसे है जिन्हे मुकदमे के फ़ैसले मे ज्यादा से ज्यादा दो साल की सजा होती परंतु उन्हे सालो हो चुके है जेलो मे पडे हुये क्योकी ना तो उनसे मिले सरकारी ९०० रुपये वाले वकील को मतलब है नाही प्रशासन को .

लेकिन जनाबे आली मुंबई मे इत्ते भारतीयो को मारने वाले बंदे को न्याय मिलने की फ़िकर देश के बाकी महानुभावो को ,वकीलो को और न्यायाधिकारियो को इतनी है कि उसके लिये ढूंढ कर इसी प्रकार के अपराधियो का मुकदमा लडने **और उन्हे बचाने के महान कृत्य मे संलग्न बंदे तो तलाश ही लाये .

मजे की बात यह है कि इससे पहले जो भी वकील इस केस को लडने के लिय़े खडे हुये उनके घर जाकर तोड फ़ोड की गई पर इनके आते ही तोड फ़ोड वाले अपने अपने घर जाकर सो गये . शायद वो इसी लिये बाकियो को धमका रहे होंगे कि केवल ये जनाब ही इस केस मे मुकदमा लड सकने के लिये दाऊद भाई ने तलाश रखे होंगे. जो कसाब या उसके वकील के साथ खडा नही हो सका वो उसे बाहर से समर्थन दिलाने मे लग गया. या मुझे पता नही होगा चोर चोर मौसेरे भाई की तरह धत करमो मे वकील वकील मौसेरे भाई ही होते होंगे.

अब जनाब काजिम साहब साहब के केस संभालते ही अचानक जो अज़मल कसाब पहले तोते की तरह सारी बातें उगल-उगलकर बता रहा था, धूर्त वकील की संगत में आते ही घाघ लोमड़ी की तरह बर्ताव करने लगा है। सबसे पहले तो वह अपनी कही पुरानी सारी बातों से ही मुकर गया, फ़िर उसके काबिल वकील ने उसे यह भी पढ़ाया कि “वह अदालत से माँग करे कि वह नाबालिग है, इसलिये उस पर इस कोर्ट में मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये”, फ़िर अज़मल कसाब ने एक और पाकिस्तानी वकील की भी माँग की, अब उसके माननीय वकील ने माँग की है कि पूरे 11000 हजार पेजों की चार्जशीट का उर्दू अनुवाद उसे दिया जाये ताकि वह अपने मुवक्किल को ठीक से केस के बारे में समझा सके और कसाब समझ सके. कभी वो अपने पैसे मांगने लगता है. कभी उसे अपनी बोरियत दूर करने के लिये अखबार चाहिये होता है कभी उसे बैरक से बाहर निकल कर घूमने और वर्जिश करने की जरूरत महसूस होने लगती है. उसे इतने लोगो के मारने पर जो शर्मिंदगी महसूस होने लगी थी अचानक ना जाने कही गायब हो गई. और हमारे ब्लोगर वकील दोस्त कहते है कि इस तरह उसे न्याय दिलाया जा रहा है.

इन्ही सारे मसलो को समझने की कोशिश करते हुये हम तालीबानी घोषित हो गये थे. लेकिन उनहोने अचानक अब कसाब के साथ काजिम खान की भी परवी शुरू करदी तो हमे फ़िर से कूछ सवाल सूझ गये. भाई माना हम पढे लिखे नही है पर ये कहा लिखा है कि अनपढ न्यायालय और वकीलो के बारे मे नही जानता.

१. एक साधारण वकील दिन मे ८ से १० कोर्ट केस अटैंड करता है तो क्या काजमी साहब जैसा जिसके जिम्मे नदीम ( गुलशन कुमार ह्त्याकांड) १९९३ की मुंबई बम कांड, इंडियन मुजाहिद्दीन ,माननीय दाऊद कास्कर के दाये हाथ एजाज पठान जैसे अनेक मासूम और मजलूम लोगो के लिये भी वकालत करते है केवल इसी एक केस मे हाथ डाले रहेगा ? (इस समय काजमी के पास तीस केस हैं)

२. क्या काजमी साहब को ये कार्य ( कासिब को बचाने का) इतना धार्मिक कृत्य लगा कि वो बाकी सारे केसो से हाथ खीच बैठे और उन सारे पुराने मुवक्किलो को बीच मे ही अल्लाह भरोसे छॊड बैठे ? तो भाई आप मे से कोई सज्जन मुझे बतायेंगे कि अगर इस अपराधी को फ़ासी के फ़ंदे से बचाना वकील साहब को इतने सबाब का काम लगा कि उन्होने पैसे वाले केस जिनसे वकील साहब को दिन मे पचास हजार या लाख रूपये की कमाई हो रही थी छॊडना उचित लगा तो फ़िर मुझे कासिब और उनके वकील साहब मे काले कोट के अलावा कोई अंतर नही दिखाई दे रहा . एक सबाब कमाने के लिये १६६ भारतीय नागरिको को मार देता है दूसरा सबाब कमाने के लिये उसे बचाने मे लग जाता है .या फ़िर अकेले इस केस से वकील साहब को बाकी सारे केसो के बराबर कमाई हो रही होगी . पैसा उसी चैनल से आ रहा होगा जिससे एजाज पठान और बाकियो के केस मे आ रहा था.

३. हर बडे वकील के पास कुछ प्रशिक्षु वकील होते है जो बिना किसी या फ़िर बहुत थोडे धन के लिये उसके साथ काम करते है . सो ये बाकी केसो मे तारीख लेना और अन्य कार्य निपटाते है. अदालत मे शायद आपको पता नही जजसाहब के साथ बैठे पेशकार से लेकर लिपिक तक डायरी चढाने वाले से लेकर साथ के कमरे मे बैठे नोटिस टाईप करने और तामील कराने वाले को हर तारीख पर पैसे दिये जाते है . ये एक सामान्य पर्क्रिया है न्याय पालिका की .इस सब कार्य के लिये मुवक्किल से लिये गये हर तारीख पर पैसे से ही इन सब ( प्रक्षिशु वकील और अन्य खर्चे ) का खर्चा
निकल आता है. और इस केस मे ये खर्चे भी नही मिलने वाले . तो ये इत्ता घाटे का सौदा कैसे कर गये काजिम साहब . ये भी हमे बता ही दीजीये जनाब . जब आप उनहे मिलने वाले २५०० रुपये रोज की सफ़ाई मे आ खडे हुये है . यानी मामला सबाब या फ़िर कही और से मिलने वाले पैसे का ही है ना ?

३. अब अगर हमारे माननीय वकील साहब टाइपिस्ट, क्लर्क, चालक आदि के वेतन, वाहन का खर्च, ऑफिस का खर्च, पुस्तकों, कम्प्यूटर, इंटरनेट व स्टेशनरी आदि का खर्च सारे खर्चे एक ही बेचारे एक ही कासिब पर डालना चाहते है तो अलग बात है . वैसे जनाब वकील साहब चाहे तो इसमे उनकी ला की पढाई का खर्चा भी जोड सकते है . लेकिन एक सवाल मेरा भी है कि बाकी सारे प्रोफ़ेशनलस का खर्चा भी उनकी फ़ीस मे शामिल ही होता है उन्हे भी कार ड्राईवर कागज पेन कंप्यूटर स्टेशनरी फ़्री मे नही आती जनाबे आली, तो इन वकील साहब के लिये इत्ती पैरवी काहे जनाब ?

४ हमे भी वकील साहब की फ़ीस २५०० रुपये रोज कोई ज्यादा नही लग रही . और वो भी अपराधिक मामलो के इत्ते फ़ेमस वकील साहब की . इससे कई गुना फ़ीस तो वकील साहब अपनी १० मिनट की एक सिंटिंग मे दी गई राय की ले लेते होंगे . हमे तो शको शुबह वकील साहब सुबह ११ बजेसे शाम पांच बजे तक हफ़्ते मे पांच दिन इस केस को इत्ती कम फ़ीस पर इस केस को लेने पर है. यानी मामला या तो सबाब कमाना है या फ़िर धन का प्रवाह कही और से ही है जनाबे आली . बाकी भारत मे जुगाड एक बडी चीज है . और दाऊद भाई के पुराने भरोसे के वकील के लिये कोई मुश्किल काम नही है जी .

५. जब भारतीय नागरिक के लिये सरकार की तरफ़ से न्याय दिलाने वाले वकील का खर्च ९०० रुपये ही है तब यहा इतनी दयानतदारी किसलिये ? या न्याय पालिका के लिये भी भारत सरकार की तरह नागरिको की जान का मूल्य अलग अलग है . गरीब ५ रुपये की चोरी के अपराधी के लिये उसकी जान की कीमत ९०० रुपये और उम्र कैद तथा १६६ भारतीय नागरिको को मारने वाला आतंकवादी न्याय के नाम पर हो रहे ड्रामे की कीमत आपके सामने है.

६. उन का बड़प्पन है कि उन्हों ने इस फीस में यह काम करना स्वीकार किया है।इस के बावजूद यदि यह कहा जा रहा है कि उन पर सरकार खजाना लुटा रही है अब साहब बडप्पन तो उनका है ही कि वे भारतीय न्याय पालिका के नियम कानूनो मे छेद ढूढ कर देश के गद्दारो का साथ खडे है . छॊटी सी झलक ये देखिये उनके बड्प्पन की 1993 के मुम्बई बम धमाकों के एक अंडरवर्ल्ड आरोपी एजाज़ पठान को षडयन्त्र रचने और विस्फ़ोट में उसकी भूमिका हेतु दस साल कैद और सवा दो लाख रुपये जुर्माना की सजा मुकर्रर हुई। टाडा कोर्ट ने उसे जेल में ही रखने का आदेश दिया था। (इस खबर को यहाँ पढ़ें) एजाज़ पठान को दाऊद के भाई इब्राहिम कासकर के साथ 2003 में भारत लाया गया था।
अब्बास काज़मी साहब ने कोर्ट द्वारा सरकार से एजाज़ पठान को “दिल की बीमारी के इलाज” के नाम पर दो लाख रुपये स्वीकृत करवाये (यानी सवा दो लाख के जुर्माने में से दो लाख रुपये तो वापस मिल ही गये)। कठोर सजायाफ़्ता कैदियों को महाराष्ट्र की दूरस्थ जेलों में भेजा जाता है, लेकिन एजाज़ पठान, काज़मी साहब की मेहरबानी से मुम्बई में आर्थर रोड जेल अस्पताल में ही जमा रहा, जहाँ उसकी दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई।

तो जनाब बडप्पन काहे का ? काहे का एहसान ? काहे आप अपने ब्लोग पर लिख लिख कर देश पर काजमी साहब का एहसान लादने मे लगे है जनाबे आली ? मामला हमारी समझ से परे है. हमतो अब अपने पर कसाब का और आपका भी एहसान मानने लगे है साहब .कि उसने भारत पर हमला किया और आपने उसको न्याय मिले दुनिया देखे कि उसे न्याय मिला है इस बात की पैरवी बाहर से ही सही पर करने मे लगे है. वैसे आपकी नजर मे बाकी जो मरे वो मक्खी मच्छर थे .उन्हे जीने का हक तक नही था ? उन्हे भी एहसान मानना चाहिये कासिब का और उनके वकील का तथा उसे बाहर से समर्थन दे रहे आप सब का कि उनका क्षण भंगुर जीवन इस काम तो आया कि उनके मरने का केस और उसमे भारत की न्याय प्रक्रिया और उसमे अपराधी के मानवाधिकारो की चिंता दुनिया ने देख ली . उन्हे भी पता चल गया कि भारत के लोगो को अपने नागरिक के लिये न्याय मिलने से ज्यादा जरूरी दुनिया को दिखाना है कि यहा न्याय के नाम पर एक सीधे सच्चे भारतीय नागरिक के अलावा किसी से अन्याय नही होता यानी यू भी कहा जा सकता है कि लायर ( इसे वकील के संदर्भ मे ले झूठे की नही)की लायलटी जस्टिस के प्रति नही बल्की उसके क्लाईट के प्रति है और इस्रे ही लायर्स की भाषा मे न्याय करते है , यानी हम सारे भारतीय नागरिक गलती पर थे जो समझते थे की न्यालय मे न्याय मिलता है . धन्यवाद जी आपका जो आपने हमे इस सच से रूबरू करा दिया .

वैसे भाई साहब आप भी अपना कुछ बड्प्पन आस्ट्रेलिया मे मर रहे भारतीयो को न्याय दिलाने मे काहे नही खर्च करते . या भारत वंशियो का कोई कही कोई अधिकार नही है ? पाक मे बंगलादेश मे अरे वहा छॊडिये यही कश्मीर मे हिंदुओ को काहे नही आप न्याय दिलाने का बडप्पन दिखाते . लेकिन उनके मौलिक अधिकार छीनने वाले को न्याय दिलाने वालो के साथ खडे हुये रहते है आप जनाब सेकुलरता की थाती थामे ? .

थू है ऐसी मानसिकता पर जिसे एक सामान्य भारतीय के अलावा बाकी सबके मानवाधिकार की चिंता रहे , और ऐसे टुच्चे बडप्पन पर . लेकिन क्या करे सेकुलर हो या वामपंथी सबकी लेखनी और वाणी और बुद्धी तीनो को एक सामान्य भारतीय नागरिक और गलती से वो हिंदू हो तो लकवा मार ही जाता है सेकुलरता और वाम पंथ चीज ही ऐसी है वैसे मुझे पता है कि आप दिल मे मुझे और उन भले मानुसो को जिन्होने जनाब काजिम साहब को जिम खाना क्लब से बाहर किया है, या जिन्होने आपके कसाब साहब के साथ भारत पधारे उनके संगी साथियो जिन्हे भारतीय सेना ने मार डाला( शायद आपके हिसाब से हत्या ) , जो उन्हे दफ़नाने के लिये भी जगह देने को तैयार नही है .ढेरो गालिया दे रहे होंगे . दीजीये लेकिन उसके साथ उनके मानवधिकार और जिंदा रहने के अधिकार की चिंता के साथ जॊ मासूम भारतीय इन हरामजादे कसाबो की गोलियो का शिकार हो काल कलवित हो गये है कभी उनके भी जीने के अधिकार के बारे मे सोचियेगा . शायद वो खुदा आपके भी कुछ गुनाह माफ़ करदे *( ध्यान दे भले ही आपने खुद उसे गोलिया चलाते देखा हो लेकिन न्यायालय मे अपराधी सिद्ध होने से पहले मासूम के अलावा कुछ नही कह सकते )
** ( जहा न्याय की देवी की आखो पर पट्टी बांध कर उसे हाथी की सूंड पकडा कर हाथी की पूछ गवाहो के जरिये बताई जाती हो)
**जहा आपका वकील आपको कितना सच बोलना है और किस बोले हुये सच को आप कानूनन मुकरने का अधिकार रखते हो. तथा आप अपने द्वारा किये गये अपराध के दंड से किस किस तकनीकी आधार पर न्यायाधिकारी
के सच जानते हुये भी बच सकते हो का ज्ञान कराता है.
***वकील . वो आदमी जो आपको आपके किये गये अथवा किये जाने वाले अपराध से न्यायाधिकारी को कानून के तकनीकी छेदो के दाव पेचो मे घुमाकर आपको निरा शरीफ़ साबित करदे . लेकिन दिल्ली के दो बडे
वकील आई यू खान और आर के आनन्द की तरह पकडा ना जाये जी .

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