Thursday, October 25, 2007

अपने ही घर में बेगानी हिन्दी

हाल ही में मुंबई में संपन्न विश्व स्तरीय सैनिक खेलों के आयोजन में 19 देशों के सैनिक मुंबई आए और यहाँ उन्होंने विभिन्न खेलों में भागीदारी की। खेलों के बाद जब भी अलग-अलग देशों के सैनिक खाने के दौरान या विश्राम के क्षणों में आपस में मिलते थे तो अपने ही देश की भाषा में बात करते थे, जबकि ऊँचे ओहदों पर बैठे भारतीय सेना के अधिकारी अंग्रेजी में बात करते थे। कई बार तो बाहर से आए सैनिक अधिकारियों ने यह जानने की भी कोशिश की कि भारत के सैनिकों की भाषा कौनसी है, मगर खिसियाए भारतीय अधिकारी कुछ जवाब नहीं दे पाते थे।

जयपुर के श्री दीपक महान 'दूरदर्शन की ओर से इन खेलों के सीधे प्रसारण का आँखों देखा हाल बताने के लिए मुंबई आए थे, इस दौरान उन्होंने जो कुछ महसूस किया उससे वे इतने व्यथित हुए कि अपनी पीड़ा यहाँ व्यक्त की है.

मूल लेख हिन्दी मीडिया पर छपा है, हिन्दी की व्यथा पर आपका ध्यानाकर्षण हेतू यहाँ लिंक दी गई है.

4 comments:

ePandit October 25, 2007 at 4:27 AM  

बहुत दुःख की बात है, अपने ही देश में कुछ लोग ऐसे हैं जो हिन्दी का प्रयोग करने में हीन भावना महसूस करते हैं। ऐसे लोगों की बुद्धि पर केवल तरस खाया जा सकता है।

बोधिसत्व October 25, 2007 at 4:59 AM  

भाई आज हिंदी की बात करना मतलब पिछड़ी मानसिकता का सबूत देना हो गया है। यह हिंदी और हिंदी वालों का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है।

Udan Tashtari October 25, 2007 at 5:16 AM  

लिंक के लिये आभार. निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं इस तरह की बातें.हालात तो बदलेंगे एक दिन. ऐसे ही मुद्दे उठाते रहें. शुभकामनायें.

Asha Joglekar October 26, 2007 at 1:46 PM  

इसके लिये हमी को प्रयत्न करना होगा । हमेशा हिन्दी का प्रयोग करना होगा ।

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