Friday, April 30, 2010

नरेन्द्र मोदी के ब्लॉग से: अर्ध शताब्दी की पुरुषार्थ यात्रा

प्रिय मित्रों,

आज पहली मई है, गुजरात का स्थापना दिवस.

गुजरातियों की ५० साल – अर्ध शताब्दी की पुरुषार्थ यात्रा.

गुजरात की स्थापना के लिए कई होनहार युवाओ ने शहादत को गले लगाया.

कई पीढ़ियोंने गुजरात की प्रगति के लिए अपनी जवानी न्योच्छावर कर दी.

अकाल हो, बाढ़ हो, चक्रवात हो या भूकंप हो – ऐसी कई आपदाओं का न केवल सामना कीया बल्की हर बार आपदा को अवसर में परिवर्तित भी कर दीया.

गुजरात की विकास यात्रा कई बार राजनीतिक कूटनीति का शिकार भी बनी, परंतु राजनीतिक इच्छा शक्ति से विकास की गाड़ी पटरी पर वापस आई एवं पूरी रफ्तार से आगे बढ रही है.

गरीब से गरीब आदमी हो, साक्षर हो या अनपढ़, शहरी हो या ग्रामीण, पुरुष हो या महिला हो, युवा हो या वरिष्ठ हो – हर एक गुजरातीने गुजरात को आगे बढाने में कुछ ना कुछ योगदान दिया है.

गुजरात को प्यार करने वाले सब का आभार व्यक्त करने का यह अवसर है.

मैं ...

गुजरात के लीये जीने वाले

गुजरात के लीये झुझने वाले

गुजरात के लीये पुरुषार्थ करने वाले

सभी का

दिल से

धन्यवाद करता हुं.

जनता जर्नादन भगवान का रूप है. स्वर्ण जयंती के पावन अवसर पर, जनता मुझे आशीर्वाद दें, अधिक से अधिक शक्ति से, परिश्रम से, निष्ठापूर्ण तरीके से आप सबका साथी बनके, मैं आपकी सेवा में सक्रिय रहुं – और आप सबने सौंपी हुई जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभा सकुं.

माँ गुर्जरी को वंदन

माँ भारती को वंदन

जय जय गरवी गुजरात.

जय जय स्वर्णिम गुजरात.

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Friday, April 2, 2010

खुदा के लिए त्योंहार मनाना बन्द करो, नहीं तो हम करवा देंगे

वर्तमान में जल्दी जल्दी कई स्थानों पर दंगे हुए जिनमें एक खास प्रकार का समीकरण सामने आया है। ये घटनाएँ हैं महाराष्ट्र के मेराज, उत्तर प्रदेश के बरेली तथा आंध्रप्रदेश के हैदराबाद की।

इन तीनों ही जगहों पर हिन्दू उत्सवों के समय फसाद हुए है। इनमें मेराज के गणेशोत्सव, बरेली में राम-बरात व हैदराबाद में हनुमान जयंती के उत्सव पर दंगा भड़का कर बाधा डाली गई। इन सभी जगहों पर कथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों की सरकारें हैं। (इससे सम्बन्धित समाचार यहाँ देखें)

एक समय था जब गुलाम भारत पर मुगलों का शासन था, तब दीपावली जैसे त्योंहार भी मनाने पर प्रतिबन्ध था। अब जहाँ जहाँ मुस्लिम आबादी ठीकठाक है वहाँ दंगा-फसाद कर हिन्दुओं को त्योंहार मनाने से रोका जा रहा है। हमारी सेक्युलर सरकार व परम सेक्युलर मीडिया इस मामले में चुप है।

सोचिये हमारी संतानों के लिए हम कैसा भारत छोड़ कर जाने वाले है? क्या वे अपने त्योंहार मना पाएंगे? या फिर उन्हे जरूरत ही नहीं पड़ेगी क्योंकि वे हिन्दु रहेंगे ही नहीं। जिसकी दुहाई दी जा रही है उस संस्कृति को दफना दिया जाएगा क्योंकि गंगा को जमुना निगल लेगी।

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Thursday, April 1, 2010

उलटे पड़ते दावे

गुजरात दंगा पीड़ितों और उनके लिए लड़ने वालों का दर्द जानना हो तो इसे जरूर पढ़ें. ये इंडिया-टुडे के ताजा अंक में छपे लेख की तस्वीरें है. क्लिक कर पढ़ें.

हिन्दी में पढ़ें:

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अंग्रेजी में पढ़ें:

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(देशहित में इंडिया टूडे से साभार)

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आर.जगन्नाथन: भारतीय धर्मनिरपेक्षता का खोखलापन

विशेष जाँच दल [SIT] के द्वारा नरेन्द्र मोदी की हुई पूछताछ के मीडिया कवरेज और अमिताभ बच्चन विवाद से भारतीय धर्मनिरपेक्षता का खोखलापन उजागर होता है. SIT के द्वारा मोदी को मात्र पूछताछ के लिए बुला लिए जाने से आत्ममुग्ध होने तथा 21 मार्च को उनके ना जाने से उपजी बौखलाहट से सिद्ध होता है कि कथित धर्मनिरपेक्षकों को न्याय से कोई सरोकार नहीं है, परंतु अपने निजी स्वार्थों से जरूर है.

भारत के पाखंडी धर्मनिरपेक्षकों ने क्षुद्र राजनीतिक कारणों की वजह से धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या का निजीकरण कर लिया है. धर्मनिरपेक्षता का अर्थ अब जो भी “संघ परिवार” की मान्यता हो उसका विपरित – ऐसा बना दिया गया है. जिस तरह से पाकिस्तान खुद को “भारत के विपरित” व्याख्यायित करता है, उसी तरह से धर्मनिरपेक्ष लोग खुद को “संघ परिवार से विपरित” के रूप में व्याख्यायित करते हैं. वे संघ को “दूसरे लोग” मानकर खुद को छलावा देते हैं.

मोदी पर कई बार आरोप लगते हैं – जो कुछ हद तक वैध भी हैं – कि वे अपने राज्य के हित को खुद के हित से जोड़कर देखते हैं. परंतु उनके आलोचक खुद उनके ही हाथों खेल रहे हैं. जब अमिताभ बच्चन को राज्य प्रवासन का ब्रांड अम्बेसडर बनने का न्यौता दिया गया तो उनपर अशिष्टता का आक्षेप लगा दिया गया. उनको आमंत्रण देने के पीछे मोदी का राजनीतिक एजेंडा हो सकता है, परंतु क्या सभी राजनेता ऐसा नहीं करते? क्यों ऐसा है कि, जो भी गुजरात को बढावा देने का प्रयत्न करता है वह धर्मनिरपेक्षकों के हमले का शिकार हो जाता है? यह वैचारिक उत्पीडन है.

अगर मोदी खुद को राज्य के रंग में रंग रहे हैं, तो “धर्मनिरपेक्ष” लोग अपनी निरी मुर्खता के साथ उनकी मदद कर रहे हैं. जो कोई भी राज्य के द्वारा नियुक्त किया जाता है उस पर प्रहार करके वे यह बात साफ तौर पर कह रहे हैं कि गुजरात के लिए काम करने का अर्थ मोदी के लिए काम करना है. इसलिए जब मोदी यह कहते हैं कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें गुजरात की अस्मिता को कुचल रही है तो सब उन पर भरोसा करते हैं.
अंधा विरोध कभी भी अच्छा नहीं होता. 2007 के गुजरात चुनाव से पहले, जयराम रमेश ने कहा था कि मोदी के नैतृत्व में राज्य के औद्योगिक विकास के पीछे मोदी का कम बल्कि गुजरातियों की औद्योगिक क्षमता का अधिक योगदान है – यह कुछ हद तक सही हो सकता है. लेकिन फिर यह कहना भी गलत नहीं होगा कि यूपीए सरकार के द्वारा हासिल औद्योगिक विकास ज्योर्ज बुश के वैश्विक विकास इंजिन की मदद से लोगों के द्वारा हासिल किया गया विकास है.

परंतु वंशवाद के समर्थक, रमेश, में इतनी हिम्मत नहीं होगी की वे इसे स्वीकार कर सकें. परंतु मोदी की उपलब्धियाँ दुषित की जाती रही हैं.

यह देखना भी कुत्सित लगता है कि मोदी का अनादर होने का कोई भी मौका देखते ही धर्मनिर्पेक्षकों के मूँह में पानी आने लगता है – जबकि उनकी प्राथमिकता न्याय होनी चाहिए. कोई इस बात का संज्ञान नहीं लेता कि बोफोर्स मामले में कभी भी राजीव गांधी को जवाब देने के लिए नहीं बुलाया गया था जबकि यह एकदम स्पष्ट था कि वे तथा उनके नजदीकी इस मामले से जुडे अघोषित संदिग्ध थे. बोफोर्स केस से जुड़े एक स्वीडिश अभियोक्ता ने आश्चर्य भी व्यक्त किया था कि इस घोटाले के लिए सोनिया गांधी से पूछताछ क्यों नहीं की गई – जबकि ओत्तेवियो क्वात्रोकी के साथ उनके भी संबंध थे. क्या यह आश्चर्य की बात हो सकती है कि क्वात्रोकी यूपीए शासन के दौरान चुपचाप निकल गए.

यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के लिए खेद व्यक्त किया था जबकि मोदी ने चुप्पी बनाए रखी. अपने आप से पूछिये: एक सीख प्रधानमंत्री द्वारा अपनी पार्टी द्वारा की गई सिख विरोधी तबाही के लिए माफी माँगना क्या वास्तव में कोई मूल्य रखता है? ऐसी क्षमा याचना से कोई फर्क नहीं पड़ता. बाबरी विध्वंस के लिए लालकृष्ण आडवाणी द्वारा “मेरे जीवन का सबसे दुखद दिन” वाली विलम्बित क्षमायाचना धर्मनिरपेक्षतावादियों लिए काफी नहीं थी, लेकिन 1984 के 20 साल बाद मनमोहन सिंह की माफी पश्चाताप का एक अद्भुत उदाहरण बन जाती है!

बच्चन प्रकरण का जहाँ तक प्रश्न है, सेक्युलर दलों के द्वारा उन्हे क्षमा मिलने की कोई सम्भावना नहीं है. वास्तव में तो वे दुगने दोषी है. निश्चित रूप से उनका पहला अपराध था कि वे गुजरात के लिए बल्लेबाजी करने में उतावलापन दिखा गए और उनका दूसरा अपराध था कि वे गांधी परिवार की नजरों में गिर गए थे. दोनों कारणों को मिलाकर देखें, तो उन्हे बख्शा नहीं जा सकता. यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी के मूर्ख तत्व उनसे सभी प्रकार के स्पष्टीकरण मांगने में व्यस्त हैं, जबकि रतन टाटा, मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी – जैसे व्यापारियों – जिन्होनें सीधे सीधे मोदी की प्रशंसा की थी – की तरफ किसी का दूर दूर तक ध्यान नहीं गया. यह बात अमिताभ ने अपने ब्लॉग में भी लिखी है.

मोदी को 2002 के दौरान उनके द्वारा किए गए या ना किए गए कार्यों के लिए सजा नहीं मिलनी चाहिए या अभियोग नहीं लगाना चाहिए यह कोई तय नहीं कर सकता है. परंतु उनपर मीडिया के द्वारा पहले से ही अभियोजन लग चुका है और उन्हें दोषी भी मान लिया गया है. यदि यह भी मान लिया जाए कि 8 साल पहले जो कुछ भी ऐसा जो अवर्णीय है वह राज्य में हुआ और उस पर यह काव्यात्मक न्याय करने की शैली है तो भी, यह एक पक्षीय धर्मनिरपेक्षता का बहाना नहीं बन सकती.

हैंस क्रिश्चियन एंडरसन (Hans Christian Andersen) की अमर कथा में उल्लेख किया गया है कि कैसे एक मासूम बालक एक सम्राट को बताता है कि उसने कपड़े नहीं पहन रखे हैं. सम्राट के दर्जियों के द्वारा उसे बताया जाता है कि उन्होनें सम्राट के लिए दिखाई ना देने वाले कपड़े बनाए हैं. ये कपड़े उन लोगों को नहीं दिखेंगे जो “मूर्ख” होंगे. चुँकि सम्राट खुद को “मूर्ख” के रूप में चिह्नित किया जाना नहीं चाहता है, इसलिए वह ऐसा प्रदर्शन करता है मानो उसने कपड़े पहन रखे हैं जबकि वह एकदम नग्न होता है.

ऐसा लगता है कि “धर्मनिरपेक्ष” लोग भी एकदम नग्न हैं – और उन्हें इसका कोई आभास ही नहीं है.

(यह लेख जगन्नाथन के अंग्रेजी लेख जो डी.एन.ए. में कॉलम के रूप में छपा था, का हिन्दी अनुवाद है)

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Tuesday, March 30, 2010

नरेन्द्र मोदी के ब्लॉग से : गुजरात विरोधियों को बख्शा नहीं जाएगा

मित्रों,

मेरे कल के ब्लॉग में मैने नई अस्पृश्यता के तालेबान शब्द का प्रयोग किया था। मेरा स्पष्ट मत है कि सार्वजनिक जीवन में किसी प्रकार की छुआछूत या अस्पृश्यता के लिए स्थान नहीं होना चाहिए।

मेरे ब्लॉग में मैंने किसी भी पार्टी या व्यक्ति का नाम नहीं लिखा, फिर भी कॉंग्रेस जैसी पार्टियों ने पूरी बात को अपने सर पर ले लिया। कॉंग्रेस ने ऐसा क्यों किया होगा? यह बात जनता को सोचनी चाहिए।

कॉंग्रेस के मित्रों ने कल गुस्से मे आकर अनाप-शनाप बयान दिए लेकिन उस मामले में मैं वक्त बर्बाद नहीं करना चाहता।

कॉंग्रेस ने श्री अमिताभ बच्चनजी से पूछा है कि वे गुजरात के साम्प्रदायिक दंगों का विरोध करते है या नहीं ? मित्रों, मोदी स्वयं दंगों का विरोध करता है। प्रत्येक नागरिक को दंगों का विरोध करना ही चाहिए।

१९८४ के दिल्ली दंगे हों, १९९२ के मुंबई दंगे हों, १९८५के गुजरात दंगे हों, कश्मीर में जारी अत्याचार हो या फिर गोधरा वाले दंगे हों। दंगों के लिए अलग- अलग तराजू नहीं हो सकते।

मित्रों,

गुजरात में वर्ष-२००२ में दंगे जारी थे, उन दिनों में गुजरात विधानसभा में मार्च २००२ में मेरे दिये वक्तव्य का एक पैराग्राफ में यहां लिख रहा हूं। दिन-रात झूठ फैलाने वालों के लिए इतना प्रमाण काफी है।

"क्या हम सभी को आत्म-चिंतन करने की आवश्यकता नहीं है? घटना गोधरा की हो या गोधरा के बाद की हो, किसी भी समय समाज को यह शोभा नहीं देती। यह घटनाएँ मानवता के लिए कलंक है। यह ऐसी घटनाएँ नहीं हैं जिससे किसी का सिर ऊंचा हो, तो फिर इस में मतभेद कैसा?"

वर्ष २००२ के मार्च महिने में दंगों के दौरान विधानसभा सदन में दिया गया मेरा वक्तव्य देश और दुनिया को सत्य बताने के लिए पर्याप्त है।

मित्रों,

२७ फरवरी २००२ को गोधरा में हृदय-विदारक घटना हुई और २८ फरवरी २००२ को दोपहर में मैने दूरदर्शन पर शांति की अपील की थी जो गुजराती में थी। मै इसे आपके समक्ष रख रहा हूं:

http://www.youtube.com/watch?v=BIRMR8zW0iI

(मेरी यह वीडियो अपील दूरदर्शन तथा आकाशवाणी पर लगातार प्रसारित होती रही तथा कई दिनों तक इसका प्रसारण जारी रहा।)

इस अपील को अक्षरसः शब्द लेखन:

गुजराती :

http://www.narendramodi.com/Any-unsubstantiated-criticism-of-Gujarat-can-never-be-tolerated,-come-what-may-gujarati.pdf

हिन्दी :

http://www.narendramodi.com/Any-unsubstantiated-criticism-of-Gujarat-can-never-be-tolerated,-come-what-may-hindi.pdf


उस दिन की मेरी दर्दभरी अपील आज इतने वर्षो के बाद भी गुजरात को बदनाम करने वाले बहरे कानों को सुनाई देगी इसकी मुझे तनिक भी आशा नहीं है।

मित्रों

गांधी,सरदार की भूमि गुजरात का अन्ध विरोध किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। गुजरात मुँहतोड़ जवाब देगा और देकर रहेगा।


(नरेन्द्र मोदी के ब्लॉग से साभार, कृपया वहीं पर जाकर टिप्पणी भी करें)

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Sunday, March 28, 2010

SIT ने बनाया मि. पोप्युलर

राजनीतिक रूप से खत्म कर देने की षड्यंत्र रूपी वर्तमान घटनाओं ने नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता को गुजरात में फिर से बढ़ा दिया है। इस बात के प्रमाण आइपीएल के मैच के दौरान सरदार पटेल स्टेडियम में मिले. रविवार को हुए मैच के अंत में जब मोदी दिखे तो स्टेडियम में "मोदी-मोदी-मोदी" के नारे गुँजते सुनाई दिये. मोदी ने अनेक बार हाथ हिलाकर जन समूह का अभिवादन स्वीकार किया।

यह सब प्रताप है, सीट के समक्ष उपस्थित होने और उस पर मीडिया की बकवास करने का तथा अमिताभ बच्चन जो गुजरात के ब्रांड एम्बेस्डर है, उनके के साथ कॉंग्रेस द्वारा अछूत सा व्यवहार करने का।

किसी के पेट में दर्द उठा क्या?

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Monday, March 22, 2010

नरेन्द्र मोदी का खूला पत्र

मेरे प्रिय देशवासियों !

सादर नमस्कार |

आप इस सच्चाई से अच्छी तरह वाक़िफ़ है कि पिछले आठ वर्षो से कृत्रिम मामले बनाकर मुझ पर तरह-तरह के मनघडंत आरोप लगाने का फैशन सा हो गया है | पिछले एक सप्ताह से जो अफवाहें, आरोप ओर झूठ फैल रहे है, इनकी गहराई में उतरें तो दूध का दूध ओर पानी का पानी हो जाएगा | सत्य हमेशा सीमाएं तोड़कर भी बाहर आता है | यह सत्य क्या है इसका ताज़ा उदाहरण आपके समक्ष रखने की मुझे जरूरत आन पडी है |

वर्ष २००२ की गोधरा घटना के बाद गुजरात विधानसभा सदन और सार्वजनिक रूप से अनेक बार मैने बयान दिया है कि भारत का संविधान और कानून सर्वोपरि है | कोई भी नागरिक, चाहे वह मुख्यमंत्री हो तो भी कानून से ऊपर नहीं है | मैं इस वास्तविकता को सिर्फ शब्दों से ही नही बल्कि सच्ची भावना (इन टू स्पिरिट) से आज तक निभाता आया हुं और भविष्य में भी इसी भावना से निभाने के लिए प्रतिबंध हूँ |

इसके बावजूद कई स्वार्थी तत्व, बिना तथ्य के मन-घडंत और अनुमानों के आधार पर गुजरात को, मेरी सरकार को और स्वयं मुझे बदनाम करने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते |

हाल ही मे "SIT का नरेन्द्र मोदी को समन्स" जैसी ख़बरें फैलाकर मोदी SIT के समक्ष उपस्थित नहीं हुए ओर मोदी ने सुप्रीम कोर्ट तथा SIT का अनादर किया और मोदी ने तय तारीख पर अनुपस्थित रह कर SIT का अनादर किया जैसा आधारहीन और मन-घडंत दुषप्रचार करके फिर एक बार गुजरात को बदनाम किया जा रहा है | इसलिए मजबूरी में देशवासियों को इस सार्वजनिक पत्र द्वारा सच्चाई बता रहा हुं |

सच्चाई :
• अखबारों की रिपोर्ट के मुताबिक SIT ने मुझे बुलवाया है, इसकी जानकारी मिलते ही सरकार के अधिकृत प्रवक्ता ने तत्काल ही बयान जारी किया कि नरेन्द्र मोदी संविधान के पालनकर्ता है ओर कानून की प्रत्येक प्रक्रिया में सहयोग देते रहे है तथा देते रहेंगे |
• SIT ने समन्स भेजकर २१ मार्च २०१० को नरेन्द्र मोदी को बुलवाया है यह झूठ किसने शुरू किया ओर किस लिए शुरू करवाया, यह गंभीर जांच का विषय है |
• २१ मार्च २०१० को रविवार था ओर इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है | अफवाह फैलाने वाले मित्रों ने इतनी सी प्राथमिक जानकारी हासिल करने की जरूरत नहीं समझी |
• सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत स्पेश्यिल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) के अधिकारीगण २१ मार्च २०१० को गुजरात में थे या नहीं इसकी प्राथमिक जानकारी हासिल करना भी इन झूठ फैलाने वाले मित्रों को मुनासिब ना लगा |
• देशवासियों को मैं विनम्रता से बताना चाहता हूँ कि मेरे उपस्थित होने के लिए २१ मार्च २०१० की तारीख तय नहीं की गई थी, इसलिए SIT में २१ मार्च को मुझे बुलाया गया था, यह बात बिलकुल झूठी है की मैं सर्वोच्च अदालत द्वारा नियुक्त संस्था के गौरव तथा कानून का आदर करके को संपूर्ण सहयोग दूँगा.

२१ मार्च २०१० तो कुछ स्वार्थी तत्वों की खोज थी तथा इसी के तहत कानून की निर्धारित प्रक्रिया में हस्तक्षेप किया गया था की वह ऐसा चाहते थे कि में SIT को कोई तवज्जो नहीं देना चाहता, ऐसी स्थिति का निर्माण हो |


पिछले २४ घंटे से देश में इस मन-घडंत जानकारी के दुष्प्रचार का अभियान ऐसा चला कि कई प्रचार माध्यम भी उसके साधन बन गये मुझे आशा है कि अब ऐसा माध्यम भी सच्चा ओर सुधारात्मक अभिगम अपनाएंगे |

प्यारे देशवासियों,

वर्ष २००२ से गुजरात को लगातार बदनाम कर रहे इन तत्वों को गुजरात और देश की जनता अच्छी तरह पहचानती है लेकिन मुझे यह सत्य कहना है कि तरह तरह की अफवाह ओर झूठ फैलाकर जनता को उत्तेजित करने का पाप लोकतंत्र की समग्र प्रक्रिया में अवरोधक बनता है | पिछले २४ घन्टे के इस पूरे घटनाक्रम को देखते हुए, यह झूठ फैलाने और मुझे बदनाम करने का षड्यंत्र नजर आ रहा है | स्वार्थी तत्वों और विभिन्न परिबलो की आपस में कैसी सांठ-गाठ है यह स्वयं ही सार्वजनिक हो गया है|

गोधरा और गोधरा घटना के बाद की घटनाओं के लिए गुजरात सरकार हमेशा जांच आयोगों , जांच एजेंसियॉ और सर्वोच्च न्यायालय-सभी की न्यायिक प्रक्रिया का आदर करती रही है और इसलिए ही इस विषय पर किसी भी मामले ओर बयानों के साथ जुड़ना राज्य सरकार ने उचित नहीं समझा | समग्र जांच हमेशा न्यायिक स्तर पर बिना के चलाती रहे इसलिए झूठ ओर बदनामी सहकर भी राज्य सरकार ने मौन रखना ठीक समझा है |

अब जब पिछले २४ घंटे का घटनाक्रम झूठ की पराकाष्ठा को पार कर चुका है तो सिर्फ सच्चाई क्या है यह देशवासियों को बताना मैने अपना कर्तव्य समझा है |

मुझे आशा है कि इस सत्य का भी दुरुपयोग करके जांच प्रक्रिया को निहित स्वार्थो के लिए गुमराह करने की कोशिश नहीं की जाएगी और प्रचार माध्यम भी मेरी इस वेदना और भावनाओं को लोगों तक पहुँचाएंगे |

धन्यवाद



(www.narendramodi.in से साभार)

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