Thursday, October 16, 2008

क्या चाहते है ये कथित मासूम

उनकी गिरफ्तारी के तुरंत बाद हाय-तौबा मचाने वालों की कोई कमी नहीं रही। कुछ लोग खूद को सौहार्द्य का शहंशाह समझने के फिराक में देशहित को भूल गए। कुछ देशद्रोही तमाम क्षेत्रों में इनके बचाव पर उतर आए, ब्लॉगजगत भी इससे अछूता नहीं रहा।

मगर जिन्हे मासूम कहा जा रहा है, पूलिस पर उँगलियाँ उठाई जा रही है, उनके विचार कैसे है?

प्रतिबंधित संगठन सिमी के कोषाध्यक्ष मो अली ने पुलिस रिमांड में पूछताछ के दौरान कहा कि उनके संगठन को भारतीय संविधान मे आस्था नहीं है.


उसने आगे कहा कि, वे लोग पूरी दुनिया को इस्लाम धर्म के अनुसार चलाना चाहता है और इसके लिए वह कोई भी कुर्बानी देने को तैयार है.

कमसे कम देश व सभ्य दुनिया के लिए इनके समर्थन से बाज आईये. देशद्रोही चिट्ठों को पहचानिये और उन पर टिप्प्णी कर नोबल शांति पुरस्कार की आशा मत रखे। जब देश ही नहीं रहेगा तब क्या करोगे?

Wednesday, October 8, 2008

सुनो तिवारी, हम हरामखोर देशद्रोही नहीं हैं

हमें गर्व है गुजराती होने पर, इस धरती ने नेहरू नहीं गाँधी और पटेल दिये है। अगर गुजरात खुश है तो तुम्हें क्यों तकलीफ होती है, हमारी मेहनत से हम खुश है। क्या खुशी मनाना देशद्रोह है?

निक्कमे वामपंथी जिन्हे केवल हड़तालों का ही प्रबन्धन आता है, अगर नेनो को मेनेज नहीं कर सके तो इसमें हमारा क्या दोष? यह प्रोजेक्ट तो उन्हीं के पास था, वे भी जश्न मनाते, किसने रोका था? हमने नेनो के आगमन पर खुशी जताई है, उसके बंगाल से जाने पर नहीं।

अगर राज ठाकरे का पड़ोसी होना अपराध है तो उस घर को क्या कहेंगे जहाँ वह रहता है, ऐसे में तो मराठी महा देशद्रोही हो गए!

गुजरात के देशभक्तों की तुलना हुर्रियत जैसे हरामखोर देशद्रोहियों से कर तुमने अपनी जलन ही व्यक्त की है। भगवान तुम्हें सोचने समझने की सक्षता दे।

हमें हमारे नेता पर गर्व है, तुम्हे लालू, मुलायम, पासवान, बुद्धदेव जैसे देशभक्त मुबारक.

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