Tuesday, June 9, 2009

वकील ले लिए न्याय क्या है?

पंगेबाज ने माफी माँग ली, मगर एक आम भारतीय को ये सवाल अभी भी खाये जा रहें हैं। पंगेबाज के चिट्ठे पर आई टिप्पणियाँ यही साबित करती थी। मगर उन्होने अपना लेख हटा कर बहुत सारे लोगो का दिल दुखाया है। मैं यहाँ इस लेख को फिर से पोस्ट कर रहा हूँ। यह एक भारतीय का दूख है। मैं जानता हूँ कोई केस करेगा तो मेरे लिए किसी वकील को 2500 दैनिक की फीस देने वाला कोई नहीं होगा, कोई मानवाधिकारवादी नहीं रोएगा, कोई मोटी बिन्दी हाय हाय नहीं करेगी. मैं भारतीयों का खून बहाने वाला नहीं हूँ ना.

यह था पंगेबाज का लेख:
कालेज हम कभी गये नही , स्कूल जाने के दिनो मे अकसर स्कूल के पीछे पराठे खाते जरूर पकडे जाते थे. सो हमे आप कतई गवार, अनपढ, जाहिल, खरदिमाग बेअकलो की श्रेणी मे रख सकते है. लेकिन जनाब हमारी इस तुच्छ मोटी बुद्धी मे पिछले दिनो ब्लोग पढ कर कुछ सवाल गूंज रहे है .जिनका जवाब तलाशने मे पिछले दिनो हम बिलकुल नाकाम रहे.

सो आप बुद्धीमान लोगो के सामने मै ये अपने सवाल रख रहा हू . कृपया मेरी शंका का निवारण करे.

पिछले दिनो कुछ ब्लोगर्स ने मुंबई ताज घूमने आये महान पाक नागरिक (भारतीय नागरिको के अनुसार मुंबई हमलों के मुख्य आरोपी) मासूम * मोहम्मद अजमल आमिर कसाब और उनके कुल जमा १६६ हत्याओ के छोटे से कुकर्मो के साथ उनके वकील की हर जायज नाजायज चालो को को न्यायोचित ठहराने मे लगे हुये थे. . महान दाऊद भाई के खासमखास वकील अब्बास काजमी, जिनका कहना था कि इस केस में जीत बेहद मुश्किल है, लेकिन मैं न्यायालय ** मे कसाब को बचाने की हर मुमकिन कोशिश करूंगा. काजमी जी ने माना था कि- कसाब के खिलाफ
काफी सबूत हैं। लेकिन वो उन्हे झुठलाने की पूरी इमानादारी से कोशिश करेगे . हम सब ये देख भी रहे है कि वो लगातार उसे इस बारे मे ज्ञान दे भी रहे है . जिसके चलते कसाब कभी अपनी उम्र कम बताने की कस्मे खा लेता है कभी उसे उर्दू के अलावा कुछ समझ नही आता कभी उसे अखबार चाहिये होता है. यानी वकील *** साहब अपने धंधे के प्रति पूरी इमानदारी दिखाते हुये उसे मुकदमे को लंबा खीचने की हर मुमकिन कोशिश करने मे लगे है . इस सारे न्याय के खेल मे वकील के हिसाब से न्याय उसके मुवक्किल के हित के अलावा कुछ नही होता . ऐसा हमारे एक ब्लोगर वकील साहब का भी कहना है.यानी उसके द्वारा मारे गये लोगो के प्रति उसके वकील की कोई जिम्मेदारी नही होती . यही है न्याय की परिभाषा हमारे ब्लोगर वकील मित्र के हिसाब से .

यानी किसी के भी मानवाधिकार की ऐसी तैसी करदो फ़िर एक अच्छा वकील पकडो जो आपके मानवाधिकार के लिये न्यायालय मे न्याय की मांग करेगा . जिनके खिलाफ़ आपके अपराध किया है उन्हे झूठा ठहरायेगा. और आपको दुबारा वही सब करने के लिये न्याय दिलवायेगा . मुझे तो हसी आ रही है आपका पता नही . साहब आपकी बात से तो हमे यही समझ मे आता है कि नन्दा केस मे आई यू खान और आर के आनन्द भी अपने मुवक्किल के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे .आखिर येन केन प्रकारेण उन्हे अपने मुवक्किल को निर्दोष साबित कराने की हर मुमकिन कोशिश मे लगे हुये थे , अपने काम के प्रति पूरी इमानदारी से लगे हुये थे . यानी उन के साथ जो कोर्ट ने किया वो सरासर गलत था ? या फ़िर आप यह कहना चाह रहे है कि वो अपने मुवक्किल के प्रति पूरी इमानदारी से कार्य तो सही कर रहे थे .लेकिन पकडॆ नही जाना चाहिये था . इससे हमे यही समझ मे आता है की अपराध करना कतई बुरा नही है . पकडे जाना बुरा है यही है जाने माने वकीलो की दूर्ष्टी मे न्याय . अब यही वकील साहब कुछ परिक्षाये पास कर न्यायाधीश बन जाते है सो न्याय के बारे मे न्यायालय के बाये मे आप सब अपनी राय बदल ही ले तो बढिया .

जैसे की देश के और लाखो केसो मे नही पकडे जाते . बाकी जो मरे उनके साथ हुये न्याय या अन्याय से बचाव पक्ष का कोई लेना देना नही होता. शायद आप वकील लोग की सोच यही बनाई जाती होगी पढाई के दिनो मे . आपको सच क्या है ? इससे कोई लेना देना नही . जिससे आपको पैसे मिले वो बलातकारी सही ,गुंडा सही ,डकैत सही, पर आपको उसे न्याय के नाम पर कोई भी दंद फ़ंद कर गवाहो को तोड उन्हे इस हद तक दुखी करे कि वो उस केस से या तो हट जाये या फ़िर आपके हिसाब से गवाही देदे , और आप उसे बाईज्जत निर्दोष साबित करदे . क्या वकालत पढते पढते लोगो की अंतराआत्मा साथ छॊड जाती है ?

तभी वकील साह्ब बलातकार की शिकार महिला को अपने बलातकारी मुवक्किल के फ़ेवर मे बदचलन साबित करने और भद्दे सवाल पूछने मे लग जाते है ? जरा सोचिये उस जगह किसी दिन आपके परिवार का कोई सदस्य हो , क्या तब भी आप उस बलातकारी गुंडे डकैत की तरफ़दारी करगे . जब आपका ही कोई सहयोगी आपके दर्द मे भागी दार बनने के बजाय आपके दर्द् की बखिया उधेड रहा होगा तब आपको कैसा लगेगा बंधु ? सोचियेगा ? अगर कही आपकी अंतरात्मा भी जिंदा बची हुई हो तो ? वरना लगे रहिये अपने धत कर्मो के बोझ से उसे दबाकर मारने मे
खैर छोडिये ये सब . मै आपको एक बात बताना भूल गया . अगर कोई गरीब बंदा बेचारा वक्त का मारा गरीब आदमी किसी गुनाह मे . कही झगडा कर बैठा .किसी को गुस्से मे हसिया उठाकर फ़ेक कर मार दिया . और न्यायालय मे अपने बचाव के लिये कोई वकील खडा नही कर पाया तो न्यायालय उसके पक्ष को प्रस्तुत करने के लिये एक वकील मुहैया कराता है जिसे पूरा मुकदमा लडने के लिये ९०० रुपये सरकार की और से दिये जाते है.

अब ये बात जज साहब भी जानते है कि ९०० रुपये मे नंगा नहायेगा क्या निचोडेगा क्या ? लेकिन एक गरीब गुर्गे भारतीय नागरिक की क्या औकात जो उसके बारे मे किसी को कुछ सोचने की फ़ुरसत हो ? क्या आपको पता है कि भारतीय जेलो मे बंद आधे से ज्यादा लोग ऐसे है जिन्हे मुकदमे के फ़ैसले मे ज्यादा से ज्यादा दो साल की सजा होती परंतु उन्हे सालो हो चुके है जेलो मे पडे हुये क्योकी ना तो उनसे मिले सरकारी ९०० रुपये वाले वकील को मतलब है नाही प्रशासन को .

लेकिन जनाबे आली मुंबई मे इत्ते भारतीयो को मारने वाले बंदे को न्याय मिलने की फ़िकर देश के बाकी महानुभावो को ,वकीलो को और न्यायाधिकारियो को इतनी है कि उसके लिये ढूंढ कर इसी प्रकार के अपराधियो का मुकदमा लडने **और उन्हे बचाने के महान कृत्य मे संलग्न बंदे तो तलाश ही लाये .

मजे की बात यह है कि इससे पहले जो भी वकील इस केस को लडने के लिय़े खडे हुये उनके घर जाकर तोड फ़ोड की गई पर इनके आते ही तोड फ़ोड वाले अपने अपने घर जाकर सो गये . शायद वो इसी लिये बाकियो को धमका रहे होंगे कि केवल ये जनाब ही इस केस मे मुकदमा लड सकने के लिये दाऊद भाई ने तलाश रखे होंगे. जो कसाब या उसके वकील के साथ खडा नही हो सका वो उसे बाहर से समर्थन दिलाने मे लग गया. या मुझे पता नही होगा चोर चोर मौसेरे भाई की तरह धत करमो मे वकील वकील मौसेरे भाई ही होते होंगे.

अब जनाब काजिम साहब साहब के केस संभालते ही अचानक जो अज़मल कसाब पहले तोते की तरह सारी बातें उगल-उगलकर बता रहा था, धूर्त वकील की संगत में आते ही घाघ लोमड़ी की तरह बर्ताव करने लगा है। सबसे पहले तो वह अपनी कही पुरानी सारी बातों से ही मुकर गया, फ़िर उसके काबिल वकील ने उसे यह भी पढ़ाया कि “वह अदालत से माँग करे कि वह नाबालिग है, इसलिये उस पर इस कोर्ट में मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये”, फ़िर अज़मल कसाब ने एक और पाकिस्तानी वकील की भी माँग की, अब उसके माननीय वकील ने माँग की है कि पूरे 11000 हजार पेजों की चार्जशीट का उर्दू अनुवाद उसे दिया जाये ताकि वह अपने मुवक्किल को ठीक से केस के बारे में समझा सके और कसाब समझ सके. कभी वो अपने पैसे मांगने लगता है. कभी उसे अपनी बोरियत दूर करने के लिये अखबार चाहिये होता है कभी उसे बैरक से बाहर निकल कर घूमने और वर्जिश करने की जरूरत महसूस होने लगती है. उसे इतने लोगो के मारने पर जो शर्मिंदगी महसूस होने लगी थी अचानक ना जाने कही गायब हो गई. और हमारे ब्लोगर वकील दोस्त कहते है कि इस तरह उसे न्याय दिलाया जा रहा है.

इन्ही सारे मसलो को समझने की कोशिश करते हुये हम तालीबानी घोषित हो गये थे. लेकिन उनहोने अचानक अब कसाब के साथ काजिम खान की भी परवी शुरू करदी तो हमे फ़िर से कूछ सवाल सूझ गये. भाई माना हम पढे लिखे नही है पर ये कहा लिखा है कि अनपढ न्यायालय और वकीलो के बारे मे नही जानता.

१. एक साधारण वकील दिन मे ८ से १० कोर्ट केस अटैंड करता है तो क्या काजमी साहब जैसा जिसके जिम्मे नदीम ( गुलशन कुमार ह्त्याकांड) १९९३ की मुंबई बम कांड, इंडियन मुजाहिद्दीन ,माननीय दाऊद कास्कर के दाये हाथ एजाज पठान जैसे अनेक मासूम और मजलूम लोगो के लिये भी वकालत करते है केवल इसी एक केस मे हाथ डाले रहेगा ? (इस समय काजमी के पास तीस केस हैं)

२. क्या काजमी साहब को ये कार्य ( कासिब को बचाने का) इतना धार्मिक कृत्य लगा कि वो बाकी सारे केसो से हाथ खीच बैठे और उन सारे पुराने मुवक्किलो को बीच मे ही अल्लाह भरोसे छॊड बैठे ? तो भाई आप मे से कोई सज्जन मुझे बतायेंगे कि अगर इस अपराधी को फ़ासी के फ़ंदे से बचाना वकील साहब को इतने सबाब का काम लगा कि उन्होने पैसे वाले केस जिनसे वकील साहब को दिन मे पचास हजार या लाख रूपये की कमाई हो रही थी छॊडना उचित लगा तो फ़िर मुझे कासिब और उनके वकील साहब मे काले कोट के अलावा कोई अंतर नही दिखाई दे रहा . एक सबाब कमाने के लिये १६६ भारतीय नागरिको को मार देता है दूसरा सबाब कमाने के लिये उसे बचाने मे लग जाता है .या फ़िर अकेले इस केस से वकील साहब को बाकी सारे केसो के बराबर कमाई हो रही होगी . पैसा उसी चैनल से आ रहा होगा जिससे एजाज पठान और बाकियो के केस मे आ रहा था.

३. हर बडे वकील के पास कुछ प्रशिक्षु वकील होते है जो बिना किसी या फ़िर बहुत थोडे धन के लिये उसके साथ काम करते है . सो ये बाकी केसो मे तारीख लेना और अन्य कार्य निपटाते है. अदालत मे शायद आपको पता नही जजसाहब के साथ बैठे पेशकार से लेकर लिपिक तक डायरी चढाने वाले से लेकर साथ के कमरे मे बैठे नोटिस टाईप करने और तामील कराने वाले को हर तारीख पर पैसे दिये जाते है . ये एक सामान्य पर्क्रिया है न्याय पालिका की .इस सब कार्य के लिये मुवक्किल से लिये गये हर तारीख पर पैसे से ही इन सब ( प्रक्षिशु वकील और अन्य खर्चे ) का खर्चा
निकल आता है. और इस केस मे ये खर्चे भी नही मिलने वाले . तो ये इत्ता घाटे का सौदा कैसे कर गये काजिम साहब . ये भी हमे बता ही दीजीये जनाब . जब आप उनहे मिलने वाले २५०० रुपये रोज की सफ़ाई मे आ खडे हुये है . यानी मामला सबाब या फ़िर कही और से मिलने वाले पैसे का ही है ना ?

३. अब अगर हमारे माननीय वकील साहब टाइपिस्ट, क्लर्क, चालक आदि के वेतन, वाहन का खर्च, ऑफिस का खर्च, पुस्तकों, कम्प्यूटर, इंटरनेट व स्टेशनरी आदि का खर्च सारे खर्चे एक ही बेचारे एक ही कासिब पर डालना चाहते है तो अलग बात है . वैसे जनाब वकील साहब चाहे तो इसमे उनकी ला की पढाई का खर्चा भी जोड सकते है . लेकिन एक सवाल मेरा भी है कि बाकी सारे प्रोफ़ेशनलस का खर्चा भी उनकी फ़ीस मे शामिल ही होता है उन्हे भी कार ड्राईवर कागज पेन कंप्यूटर स्टेशनरी फ़्री मे नही आती जनाबे आली, तो इन वकील साहब के लिये इत्ती पैरवी काहे जनाब ?

४ हमे भी वकील साहब की फ़ीस २५०० रुपये रोज कोई ज्यादा नही लग रही . और वो भी अपराधिक मामलो के इत्ते फ़ेमस वकील साहब की . इससे कई गुना फ़ीस तो वकील साहब अपनी १० मिनट की एक सिंटिंग मे दी गई राय की ले लेते होंगे . हमे तो शको शुबह वकील साहब सुबह ११ बजेसे शाम पांच बजे तक हफ़्ते मे पांच दिन इस केस को इत्ती कम फ़ीस पर इस केस को लेने पर है. यानी मामला या तो सबाब कमाना है या फ़िर धन का प्रवाह कही और से ही है जनाबे आली . बाकी भारत मे जुगाड एक बडी चीज है . और दाऊद भाई के पुराने भरोसे के वकील के लिये कोई मुश्किल काम नही है जी .

५. जब भारतीय नागरिक के लिये सरकार की तरफ़ से न्याय दिलाने वाले वकील का खर्च ९०० रुपये ही है तब यहा इतनी दयानतदारी किसलिये ? या न्याय पालिका के लिये भी भारत सरकार की तरह नागरिको की जान का मूल्य अलग अलग है . गरीब ५ रुपये की चोरी के अपराधी के लिये उसकी जान की कीमत ९०० रुपये और उम्र कैद तथा १६६ भारतीय नागरिको को मारने वाला आतंकवादी न्याय के नाम पर हो रहे ड्रामे की कीमत आपके सामने है.

६. उन का बड़प्पन है कि उन्हों ने इस फीस में यह काम करना स्वीकार किया है।इस के बावजूद यदि यह कहा जा रहा है कि उन पर सरकार खजाना लुटा रही है अब साहब बडप्पन तो उनका है ही कि वे भारतीय न्याय पालिका के नियम कानूनो मे छेद ढूढ कर देश के गद्दारो का साथ खडे है . छॊटी सी झलक ये देखिये उनके बड्प्पन की 1993 के मुम्बई बम धमाकों के एक अंडरवर्ल्ड आरोपी एजाज़ पठान को षडयन्त्र रचने और विस्फ़ोट में उसकी भूमिका हेतु दस साल कैद और सवा दो लाख रुपये जुर्माना की सजा मुकर्रर हुई। टाडा कोर्ट ने उसे जेल में ही रखने का आदेश दिया था। (इस खबर को यहाँ पढ़ें) एजाज़ पठान को दाऊद के भाई इब्राहिम कासकर के साथ 2003 में भारत लाया गया था।
अब्बास काज़मी साहब ने कोर्ट द्वारा सरकार से एजाज़ पठान को “दिल की बीमारी के इलाज” के नाम पर दो लाख रुपये स्वीकृत करवाये (यानी सवा दो लाख के जुर्माने में से दो लाख रुपये तो वापस मिल ही गये)। कठोर सजायाफ़्ता कैदियों को महाराष्ट्र की दूरस्थ जेलों में भेजा जाता है, लेकिन एजाज़ पठान, काज़मी साहब की मेहरबानी से मुम्बई में आर्थर रोड जेल अस्पताल में ही जमा रहा, जहाँ उसकी दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई।

तो जनाब बडप्पन काहे का ? काहे का एहसान ? काहे आप अपने ब्लोग पर लिख लिख कर देश पर काजमी साहब का एहसान लादने मे लगे है जनाबे आली ? मामला हमारी समझ से परे है. हमतो अब अपने पर कसाब का और आपका भी एहसान मानने लगे है साहब .कि उसने भारत पर हमला किया और आपने उसको न्याय मिले दुनिया देखे कि उसे न्याय मिला है इस बात की पैरवी बाहर से ही सही पर करने मे लगे है. वैसे आपकी नजर मे बाकी जो मरे वो मक्खी मच्छर थे .उन्हे जीने का हक तक नही था ? उन्हे भी एहसान मानना चाहिये कासिब का और उनके वकील का तथा उसे बाहर से समर्थन दे रहे आप सब का कि उनका क्षण भंगुर जीवन इस काम तो आया कि उनके मरने का केस और उसमे भारत की न्याय प्रक्रिया और उसमे अपराधी के मानवाधिकारो की चिंता दुनिया ने देख ली . उन्हे भी पता चल गया कि भारत के लोगो को अपने नागरिक के लिये न्याय मिलने से ज्यादा जरूरी दुनिया को दिखाना है कि यहा न्याय के नाम पर एक सीधे सच्चे भारतीय नागरिक के अलावा किसी से अन्याय नही होता यानी यू भी कहा जा सकता है कि लायर ( इसे वकील के संदर्भ मे ले झूठे की नही)की लायलटी जस्टिस के प्रति नही बल्की उसके क्लाईट के प्रति है और इस्रे ही लायर्स की भाषा मे न्याय करते है , यानी हम सारे भारतीय नागरिक गलती पर थे जो समझते थे की न्यालय मे न्याय मिलता है . धन्यवाद जी आपका जो आपने हमे इस सच से रूबरू करा दिया .

वैसे भाई साहब आप भी अपना कुछ बड्प्पन आस्ट्रेलिया मे मर रहे भारतीयो को न्याय दिलाने मे काहे नही खर्च करते . या भारत वंशियो का कोई कही कोई अधिकार नही है ? पाक मे बंगलादेश मे अरे वहा छॊडिये यही कश्मीर मे हिंदुओ को काहे नही आप न्याय दिलाने का बडप्पन दिखाते . लेकिन उनके मौलिक अधिकार छीनने वाले को न्याय दिलाने वालो के साथ खडे हुये रहते है आप जनाब सेकुलरता की थाती थामे ? .

थू है ऐसी मानसिकता पर जिसे एक सामान्य भारतीय के अलावा बाकी सबके मानवाधिकार की चिंता रहे , और ऐसे टुच्चे बडप्पन पर . लेकिन क्या करे सेकुलर हो या वामपंथी सबकी लेखनी और वाणी और बुद्धी तीनो को एक सामान्य भारतीय नागरिक और गलती से वो हिंदू हो तो लकवा मार ही जाता है सेकुलरता और वाम पंथ चीज ही ऐसी है वैसे मुझे पता है कि आप दिल मे मुझे और उन भले मानुसो को जिन्होने जनाब काजिम साहब को जिम खाना क्लब से बाहर किया है, या जिन्होने आपके कसाब साहब के साथ भारत पधारे उनके संगी साथियो जिन्हे भारतीय सेना ने मार डाला( शायद आपके हिसाब से हत्या ) , जो उन्हे दफ़नाने के लिये भी जगह देने को तैयार नही है .ढेरो गालिया दे रहे होंगे . दीजीये लेकिन उसके साथ उनके मानवधिकार और जिंदा रहने के अधिकार की चिंता के साथ जॊ मासूम भारतीय इन हरामजादे कसाबो की गोलियो का शिकार हो काल कलवित हो गये है कभी उनके भी जीने के अधिकार के बारे मे सोचियेगा . शायद वो खुदा आपके भी कुछ गुनाह माफ़ करदे *( ध्यान दे भले ही आपने खुद उसे गोलिया चलाते देखा हो लेकिन न्यायालय मे अपराधी सिद्ध होने से पहले मासूम के अलावा कुछ नही कह सकते )
** ( जहा न्याय की देवी की आखो पर पट्टी बांध कर उसे हाथी की सूंड पकडा कर हाथी की पूछ गवाहो के जरिये बताई जाती हो)
**जहा आपका वकील आपको कितना सच बोलना है और किस बोले हुये सच को आप कानूनन मुकरने का अधिकार रखते हो. तथा आप अपने द्वारा किये गये अपराध के दंड से किस किस तकनीकी आधार पर न्यायाधिकारी
के सच जानते हुये भी बच सकते हो का ज्ञान कराता है.
***वकील . वो आदमी जो आपको आपके किये गये अथवा किये जाने वाले अपराध से न्यायाधिकारी को कानून के तकनीकी छेदो के दाव पेचो मे घुमाकर आपको निरा शरीफ़ साबित करदे . लेकिन दिल्ली के दो बडे
वकील आई यू खान और आर के आनन्द की तरह पकडा ना जाये जी .

18 comments:

राम त्यागी June 9, 2009 at 10:30 PM  

darane ki kya jaroorat thi, post hataani nahi chahiye thi, sabako bolane ka adhikaar hai....bahas honi chahiye es par

अजय कुमार झा June 9, 2009 at 10:32 PM  

आदरणीय नटराज जी, मुझे ये नहीं पता की आपने अरुण जी का ये आलेख यहाँ उनसे अनुमति लेकर लगाया है..या वैसे ही..किन्तु मैं समझता हूँ की यदि उन्होंने इस पोस्ट को वहा से हटा दिया तो ..कुछ कारण तो जरूर ही होगा...आपकी भावनाओं का मैं सम्मान करता हूँ..किन्तु यदि आपको कुछ कहना ही था तो आप अपनी बात अपनी भाषा और अपने शब्दों में कहते तो ज्यादा बेहतर होता...एक मित्र होने के एहसास के कारण जो लगा कह दिया..यदि कुछ बुरा लगे तो क्षमा करें...

मसिजीवी June 10, 2009 at 1:14 AM  

चिट्ठाकार को धमकाकर उसे पोस्‍ट हटाने के लिए कहना निश्चित तौर निंदनीय है। पहले भी अलग अलग चिट्ठाकारों के साथ एकाध बार हुआ है। हम इसकी निंदा करते हैं।

इस पोस्‍ट के साथ पोस्‍ट पर आईं टिप्‍पणियॉं भी डाली जानी चाहिए थीं ताकि बात पूरे परिप्रेक्ष्‍य में सामने आती।

उस लेख पर मेरी टिप्‍पणी इस प्रकार थी-
इतना तो स्‍पष्‍ट है कि यदि व्‍यवस्‍था चाहे तो देशवासियों के इतने अपमान से बचा जा सकता था... सप्‍ताह दस दिन में फैसला हो जाना चाहिए था... कसाब की कार्रवाई को सिविल या क्रिमिनल नही वरन फौजी कार्रवाई माना जाना चाहिए तथा उसी व्‍यवस्‍था के तहत अब तक निपटा दिया जाना चाहिए था । देश के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करने वाला सामने खड़ा हो मुस्‍कराए... इससे स्‍वाभिमान को चोट लगती है ... हमारे स्‍वाभिमान को तो लगती है

अजय कुमार झा June 10, 2009 at 1:42 AM  

अरे गुरूजी...किसी के कम्मेंट आने तो दो सारे ही मोडरेशन पर भेज दिए क्या...

Pramendra Pratap Singh June 10, 2009 at 2:23 AM  

पंगेबाज ने तो भी किया वह सर्वथा उचित नही था, इस प्रकार किसी के बहकावे में आकर हटना ठीक नही होता है।

लेख में एसा कुछ नही था जिससे किसी की भावनाऐं आहत हुई। मुकदमें के डर से लेख हटाने की निन्‍दा करता हूँ।

Shiv June 10, 2009 at 2:33 AM  

वकील के लिए आय क्या है?

वकील के लिए आय वह है, जिसपर आयकर कभी न लगे.

Shiv June 10, 2009 at 4:29 AM  

सॉरी सॉरी...मेरी पिछली टिप्पणी में न्याय की जगह आय टाइप हो गया था..मुझे लगा आय की बात हो रही है. न्याय वाली बात पर तो मेरा 'नो कमेन्ट' है जी.

कमेन्ट करने से फंसने का चांस है. सुना है देश की किसी भी अदालत में फौजदारी दायर की जा सकती है. दाल-रोटी के चक्कर में फंसा आदमी फौजदारी कैसे झेल पायेगा? वैसे भी कोर्ट-कचहरी की बात होती है तो कैलाश गौतम जी की कविता याद आ जाती है...

कचहरी का मारा कचहरी में भागे
कचहरी में सोये कचहरी में जागे

Anonymous,  June 10, 2009 at 5:43 AM  

आय की बात करो तो हमारा भी कमेन्ट लेलो
न्याय की बात पर हमारा भी नो कमेन्ट है जी
हम तो अपना नाम भी नहीं लिखेंगे...

वैसे भी कोर्ट-कचहरी की बात होती है हमें शंकर महावीर जी की यह कविता याद आ जाती है।

कचहरी ने काटा तो पानी न मांगे
वही इसको जाने ये जिस तन को ये लागे
जो इसमें फंसे वो रकम भर न छूटे
कचहरी की लागी जनम भर न छूटे

कचहरी कभी ना दिखाना रे मौला
हमें सिरफिरों से बचाना रे मौला

gautam baveja,  June 10, 2009 at 6:43 AM  

अच्छा हुआ पता लग गया कि कानूनी आतंकवाद क्या होता है। पोस्ट हटानें की बजाय इस प्रकार की धमकी देने वालों का बहिश्कार करना चाहिये। एसी धमकी देने वाले के ब्लाग पर कमेन्ट देना बनद कर देना चाहिये। यह बहुत शरमनाक हरकत है।

Anonymous,  June 10, 2009 at 11:46 AM  

अरुण जी का लेख यहां डालने के लिए धन्यवाद, वर्ना हम उन्हें पढ़ने का एक मौका और चूक जाते

Gyan Darpan June 10, 2009 at 7:12 PM  

हम तो इस लेख को यहीं पढ़ पायें है ! अरुण जी ने जो प्रश्न उठाये है वे बिलकुल सही है !

Anonymous,  June 10, 2009 at 7:22 PM  

कोई दिनेशराय द्विवेदी को कानूनी सलाह दे कि वे देशी विदेशी वेबसाईट से फोटो उटा उठा कर अपने लेखों में डाल रहे हैं ये गैरकानूनी चोरी है।

हो सकता है कि उनका सोचना हो कि उन वेबसाईट ओनर को मालुम नहीं चलेगा, अगर पकड़े न जाँय तो चोरी नहीं होती।

पकड़े भले ही ना जांये, लेकिन यहां चिट्ठाजगत में तो सबको मालूम है कि चोरी की जा रही है।

Anonymous,  June 10, 2009 at 11:01 PM  

दिनेश जी…. और सदाशयता??
दिनेश जी…. और विनम्रता??
दिनेश जी…. और सहिष्णुता??

सब के सब असंभव हैं…

दिनेश जी तो वो तत्व हैं जो अपने वकील होने को धमकाने का माध्यम बना कर जो चाहे लिखते हैं..
ये वो शख्श हैं जो हिन्दुओं पर मनमाना प्रहार करते हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं से खेलते हैं!!!!

पर मैं इनसे बहुत डरता हूँ.. वकील हैं… मुकदमा चला कर अन्दर करवा सकते हैं.. जहां मुझे भी लौकी ही खाने को मिलेगी.
कसाब या अन्य आतंकवादियों की तरह चिक्केन नहीं मिलेगा.

तो दिनेश जी… मैं कर बद्ध होकर विनम्र निवेदन करता हूँ कि क्षमा करें.. आपके हिन्दू विरोधी रूप को दिखाया..
मैं बहुत बहुत क्षमा-प्रार्थी हूँ… विचारों कि अभिव्यक्ति गयी भाड़ में.. आप सबसे बड़े हैं और मैं बहुत डरता हूँ आपसे!!

Napunsak Bhaarteeya June 10, 2009 at 11:05 PM  

जो डर गया,
समझो मर गया..

पंगेबाज... आज से नाम बदल लो.
दगाबाज और धोखेबाज ज्यादा सुन्दर हैं..
दिनेश (!!!) सॉरी सॉरी, वकील साहेब दिनेश जी तो महा ज्ञानी हैं गलत कैसे हो सकते हैं.
गलती तो हमसे हो गयी.. उल्टे पैदा हो गए थे!!!

नपुंसक भारतीय

नपुंसक भारतीय June 10, 2009 at 11:17 PM  

>>वैसे भाई साहब आप भी अपना कुछ बड्प्पन आस्ट्रेलिया मे मर रहे भारतीयो को न्याय दिलाने मे काहे नही खर्च करते . या भारत वंशियो का कोई कही कोई अधिकार नही है ? पाक मे बंगलादेश मे अरे वहा छॊडिये यही कश्मीर मे हिंदुओ को काहे नही आप न्याय दिलाने का बडप्पन दिखाते . लेकिन उनके मौलिक अधिकार छीनने वाले को न्याय दिलाने वालो के साथ खडे हुये रहते है आप जनाब सेकुलरता की थाती थामे ? .....<<

Yahi chubh gayaa hogaa Dinesh ko.
Naam kaa Hindu hai.
Kaam se koi dharm nahin!!

Priyanka Singh Mann June 11, 2009 at 12:28 AM  

मैं पंगेबाज जी के आलेख से पूर्णतया सहमत हूँ ..उन्होंने केवल एक व्यक्ति विशेष की एक काम करने की नीयत पर सवाल उठाये हैं और मुझे नहीं लगता की यह सवाल उनुचित हैं या इनसे न्यायपालिका की अवमानना हो रही

है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सब को है । मुझे यह समझ नहीं आता की कैसे अनेकों भारतीयों के मानवाधिकारों को हनन करने वाले के मानवाधिकार कुछ बुधीजिवियों को बहुत अच्छे से नज़र आते हैं पर अपने ही अनेकों देशवासियों की पीड़ा और प्रताड़ना को वह अनदेखा कर देते हैं । क्यों न होंगे आतंकवादी हमले ..क्यों न रोंदेगा कोई हमारे अस्तित्व को या हक को जब हमें ख़ुद ही उस अस्तित्व की बात करने मैं झिझक होती है । पंगेबाज जी का प्रयास प्रशंसनीय है और उन्हें यह पोस्ट नहीं हटानी चाहिए थी पर शायद गलती उनकी भी नहीं , जिस देश मैं कसब जैसों के हक की बात होती है और देशभक्तों की नीयत पर सवाल यहाँ क्यों कोई बैठे बिठाये किसी आफत में फंसेगा ..उनकी बात को समझे और सराहने वाले बहुत कम है ।

Arvind Mishra June 11, 2009 at 12:39 AM  

मैंने पूरे लेख को ध्यान से पढ़ा -यह एक एक व्यक्ति की सहज और बेलौस अभिव्यक्ति है और ऐसा भी नहीं लगता कि उन्होंने किसी भी नैतिक या कानूनी सीमा रेखा का उल्लंघन किया है -सविंधान ने आत्माभिव्यक्ति की पूरी सवतन्त्रता दी है -मुझे लगता है दिनेश जी को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए और पंगेबाज जी को इस आलेख की अपने ब्लॉग पर पुनः प्राणप्रतिष्ठा करनी चाहिए -यह एक भारतीय और राष्ट्रप्रेमी के मन की बात है ! किमाधिकम ! बुद्धिमान को इशारा काफी !

ताऊ रामपुरिया June 11, 2009 at 7:22 AM  

श्रीमान नटराज जी आपके आभारी हैं कि आपने यह लेख यहां जनता को उपलब्ध करवाया. मैं यहा शत प्रतिशत श्री अरविंद मिश्राजी से सहमत हूं.

रामराम.

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