Thursday, June 14, 2007

झूठ सो झूठ है

मामला एकदम सिधा व सरल सा है. एक चिट्ठे ने नारद के नियमो का उलंघन किया, उसे नारद से हटा दिया गया. यह नियम सब पर बराबरी से लागु होता है. किसी को भी कहीं भी लगता है की कोई चिट्ठा इन नियमो को भंग कर रहा है तो आप शिकायत कर सकते है, तुरंत कार्यवाही जरूर होगी.
मगर दुःख की बात है लगातार हर तीसरी पोस्ट में नारद पर हमला हो रहा है. नारद को तानाशाह, व्यक्ति केन्द्रित, साम्प्रदायिक व न जाने क्या क्या कहा जा रहा है. यह अत्यंत दुःख के क्षण है.
नारद की कार्यवाही से दुःखी चन्द लोग जहाँ नारद पर तीखे हमले कर रहे है, इस कार्यवाही के पक्षधर बहूसंख्यक चिट्ठाकार मौन है. इसका कारण उनका शरीफ होना है जो विवादो से दूर रहना चाहते है. इसे किसी की कमजोरी न मानी जाय. सच्चाई यह है की मुश्कील से दस लोगो के मुकाबले भारी संख्या में चिट्ठाकार नारद की कार्यवाही के पक्ष में है.
नारद को भला बुरा कहने वाली पोस्टे नारद पर दिख रही है, क्या यह साबित नहीं करता है की नारद तानाशाह नहीं है.
बात का बतंगड़ बनाना वाम पंथीयो को खुब आता है. अपनी गलती को तो स्वीकारते नहीं उपर से बात कहाँ से कहाँ पहूँचा कर विवाद खड़ा करना चाहते है. नारद के लिए चन्दा एकत्र करने की बात यहाँ कहाँ से बीच में आ गई, समझना मुश्किल है.
नारद व बेंगाणी बन्धूओं के साथ साथ जितुभाई व अनुपजी पर भी झूठे आरोप लगा कर उनकी छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है.
कहते है संजय बेंगाणी टिप्पणीयों में गाली गलौच करता है, एक भी ऐसी टिप्पणी दिखा दिजीये, मैं खूद संजय बेंगाणी की शिकायत नारद पर करने को तैयार हूँ.
कहते हैं बेंगाणी नारद को चन्दा देते रहते है, इसलिए उनका पक्ष लिया जाता है, तो कोई भी चन्दादाताओं की लिस्ट उठा कर देख सकता है, बेंगाणीओ ने एक भी धेला दिया हो तो. फिर ये नारद पर हमला करने वाले झूठ पर झूठ क्यों बोले जा रहे है समझमें नहीं आता. शायद हीटलर का वह सिद्धांत इन्होने आत्मसात कर लिया है की एक झूठ को बार बार दोहराओ वह सच लगने लगेगा.
वस्तुतः यह वैचारिक नहीं संस्कारीक टकराव है. संस्कारी लोग मौन है, कलहप्रिय लोगो को भड़ास निकालने का जरिया मिल गया है.
हजार कोशिश कर लें अनुप शुक्ला, जितेन्द्र चौधरी व बेंगाणी बन्धूओ की छवि जो सैंकड़ो चिट्ठाकारों के मन में है उसे खण्ड़ीत नहीं किया जा सकेगा.
वैसे ही आप एक फीड एग्रीगेटर तो दस मिनटों में बना सकते है मगर नारद नहीं.

5 comments:

dhurvirodhi June 15, 2007 at 1:16 AM  

नटाराज जी, क्या इस कार्यवाही का विरोध करने वाले वाकई वामपंथी, नारद पर झूठे हमला करने वाले, कलहप्रिय, झूठ बोलने वाले हैं?

Nataraj June 15, 2007 at 1:44 AM  

झूठ का साथ देने वालो को जो मर्जी हो कह लें.

अनुनाद सिंह June 15, 2007 at 2:12 AM  

मेरे खयाल से इस बात पर मौन साधकर अपने काम में लगे रहना ही सबसे उचित रास्ता है। ये भाई लोग एक जगह जो कहते हैं उससे दूसरे जगह कही गयी बात मेल ही नहीं खाती। चिल्लाने की इनकी पुरानी आदत है। पुरानी आदतें बड़ी मुश्किल से जाती हैँ।

ePandit June 15, 2007 at 7:11 AM  

आपसे सहमत हूँ। नारद द्वारा अपने अधिकार का प्रयोग कर उचित निर्णय लिया गया है। इस निर्णय का विरोध दो तरह के लोग कर रहे हैं एक तो वे जो उदारवादी हैं और भलमानसहत के चलते ऐसा कर रहे हैं। दूसरे जिन्हें जो प्रतिबंधित ब्लॉगों की ही शैली में लिखना आता है।

Pramendra Pratap Singh July 10, 2007 at 8:10 PM  

मै आपकी सभी बातों से सहमत हूँ, किन्‍तु इसे छोड़कर *

हजार कोशिश कर लें अनुप शुक्ला, जितेन्द्र चौधरी व बेंगाणी बन्धूओ की छवि जो सैंकड़ो चिट्ठाकारों के मन में है उसे खण्ड़ीत नहीं किया जा सकेगा.

निश्चित रूप से कुछ विफनता इन्‍ही लोगों की है कि एक धड़ा इस तरह फला फूला।

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