
बंगाल में दंगा फसाद करने के कोई कारण नजर नहीं आते. वहाँ तब भी दंगे नहीं हुए जब सबसे ज्यादा होने की सम्भावना थी.
इस बार ऐसा क्या हुआ? वामपंथी वैसे भी अल्पसंख्यको का विशेष ध्यान रखते है. देशद्रोह की हद तक जा कर बंगलादेशीयों को संरक्षण मिलता रहा है. नंदीग्राम में जो हुआ सो हुआ मगर खुद वामपंथी ही अपनी विचारधारा से उपर उठ कर नंदीग्राम वासीयों के साथ खड़े दिखे. उन्हे अकेला नहीं छोड़ा, वे कोई कश्मीरी पंडित या गोदरा में मरने वाले तो थे नहीं जो कोई आंसू बहाने वाला ही ना मिलता. एक पूरी जमात उनके लिए लिखने, दिखाने, प्रदर्शन करने सड़क पर उतर आयी. और कोई क्या कर सकता है? न्याय के लिए लोकतांत्रिक तरीके से लड़ ही तो सकते है.
तो बुद्धदेवजी की सरकार के अलावा सभी कोई अल्पसंख्यको के साथ खड़ा नजर आ रहा था. ऐसे में दंगा फसाद करने की बात समझ में नहीं आती. इधर मामला नंदीग्राम का नहीं तस्लिमाजी का भी है. कट्टरपंथी उन्हे बर्दास्त नहीं कर पा रहे. वैसे तस्लिमाजी ने हिन्दू कट्टरपंथीयों पर भी खुब लिखा है. लज्जा में ठाकरे से लेकर आडवाणीजी तक पर लिखा है. मगर कोई हिन्दू उन्हे बाहर निकालने की बात नहीं करता. उलटा भाजपा की सरकार वाले राज्य में उन्हे शरण मिली हुई है.
बंगाल जैसे धर्मनिरपेक्ष राज्य में रह कर भी मुसलमानो की कट्टरपंथी सोच नहीं बदली है, दूध पिलाने से साँप जहर पैदा करना कहाँ छोड़ता है?
3 comments:
साँप वाली तुलना मुझे गलत लग रही है। साँप बेचारा तभी काटता है जब किसी का पैर उस पर पड़ जाय! किन्तु जेहाद का राक्षस तो सारे काफिरों(मुहम्मद को न मानने वालों) को निकृष्टतम व्यवहार का पात्र समझता है।
सोरी भाई, भूल थई गई. साँप से कह दें बूरा न माने. :)
बंगाल जैसे धर्मनिरपेक्ष राज्य में रह कर भी मुसलमानो की कट्टरपंथी सोच नहीं बदली है, दूध पिलाने से साँप जहर पैदा करना कहाँ छोड़ता है?
आप का लेख अच्छा ही चल रहा था पर उपरोक्त पंक्तियाँ लिख कर आपने अपनी सीमित सोच का परिचय दिया. और बंगाल ही क्यों पूरा भारत क्या धर्मनिरपेक्ष नही है?
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