Friday, October 2, 2009

क्योंकि रेवती हिन्दू थी, इसलिए प्रधान मंत्री की नींद नहीं उड़ी

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ब्रिटेन में दो भारतीय मुस्लिम डाक्टरों के आतंकवादी गतिविधियों में पकड़े जाने पर मार्मिक अपील में ऐसी घटनाओं का पूरे समाज और कौम की गलत छवि बनाने के लिए इस्तेमाल न करने के लिए कहा। ये समाचार भी आए कि ऐसी बातों से उनको नींद नहीं आई। सवाल पूछा जा सकता है कि जब भारत के पढ़े- लिखे और सुसंस्कृत मुस्लिम वर्ग के लड़के भी अलकायदा की गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं तो यह वक्त उनकी नींद उड़ाने का क्यों नहीं बनता जो समाज में मजहब के नाम पर हिंसाचार कर रहे हैं? प्रधानमंत्री की नींद कश्मीर घाटी से उजाड़ दिए गए हिन्दुओं का दर्द देखकर नहीं उड़ी, रामसेतु तोड़े जाते समय अकुलाहट नहीं हुई, संसद की रक्षा में शहीद हुए वीरों के परिजनों ने जब अलंकरण लौटाए, तब उनकी नींद नहीं उड़ी। सेकुलर होने का अर्थ हिन्दू हनन पर सन्नाटा ओढ़ना और गैर हिन्दू की हर गतिविधि पर संवैधानिक सत्ता की नींद उड़ाना क्यों हो गया है? ब्रिटेन में दो भारतीय डॉक्टरों द्वारा ग्लासगो हवाई अड्डे पर आत्मघाती हमले की योजना क्रियान्वित करने के समाचार के साथ-साथ मलेशिया में हिन्दुओं के इस्लाम में जबरन मतांतरण के समाचार भी छपे। लेकिन ब्रिटेन की घटना पर नींद उड़ती है और मलेशिया में हिन्दू हनन पर नींद गहरी हो जाती है।

मलेशिया में रेवती मसूसाई को 180 दिन इस्लामी जेल में बंद रखने के बाद पिछले सप्ताह छोड़ा गया तो 6 जुलाई को उसके बयान देश विदेश में समाचार एजेंसियों द्वारा प्रसारित किए गए। इस बयान में रेवती ने दिल दहलाने वाले अनुभवों का वर्णन किया है। उसे इस्लामी जेल में मुल्लाओं ने जबरन गोमांस खिलाने की कोशिश की। उसके नागरिकता पहचान पत्र से उसका मजहब "इस्लाम" काटकर "हिन्दू" लिखने से इस्लामी शरीयत अदालत ने मना कर दिया, उसकी 18 महीने की बच्ची को जबरन उसके पति से ले जाकर रेवती के बूढ़े माता-पिता के पास रखा, जो मुस्लिम हैं। ताकि उस हिन्दू दम्पत्ति की बेटी को मुस्लिम के नाते पाला पोसा जाता रहे। रेवती की दादी हिन्दू थीं। माँ शादी के बाद मुसलमान हो गईं। रेवती का लालन-पोषण उसकी दादी के यहाँ हुआ इसलिए वह हिन्दू हो गई। पर मलेशिया में कानून है कि मुस्लिम माता-पिता की संतान अपना मजहब नहीं बदल सकती। रेवती का एक हिन्दू युवक से विवाह हुआ। उन्होंने अपनी बच्ची का नाम भी हिन्दू ही रखा। पर इस्लामी अदालत ने इस विवाह को भी अवैध ठहराते हुए रेवती को इस्लामी "सुधारगृह" में गिरफ्तार कर भेज दिया गया जहाँ 180 दिनों में उस पर भीषण दबाव डाला गया कि वह स्वयं को मुस्लिम घोषित कर दे। पर रेवती की निष्ठा और हिम्मत की प्रशंसा करनी चाहिए उसने अपनी अंतरात्मा की आवाज के खिलाफ जाने से इनकार कर दिया। रेवती को अकेली कोठरी में रखा गया, उसे धमकाया गया कि अगर वह स्वयँ को मुस्लिम घोषित नहीं करेगी तो उसकी बच्ची को हमेशा के लिए उससे अलग कर दिया जाएगा। यह सब रेवती को इसलिए सहन करना पड़ा क्योंकि वह हिन्दू के नाते जीना चाहती है लेकिन सरकार और इस्लामी अदालत उसे मुसलमान बनाने पर तुले हैं।

रेवती की व्यथा पर भारत के वे मानवाधिकारवादी संगठन भी चुप हैं जो कश्मीर में आतंकवादियों की वकालत करते हैं और अफजल की माफी के लिए प्रदर्शन करते हैं। रेवती की पीड़ा उन महिला संगठनों को भी व्यथित नहीं कर रही है जो फिलिस्तीन, नेपाल और अफ्रीका में महिला मुक्ति पर सेमिनार करते हैं लेकिन स्वदेशी, स्वधर्मी महिलाओं की व्यथा उन्हें चोट नहीं पहुँचाती।

क्या यह सन्नाटा इसलिए है क्योंकि रेवती हिन्दू है और अत्याचार करने वाले मुसलमान?

पीड़ा और वेदना का न कोई रंग होता है न मजहब। इस्लाम परस्त सेकुलर तालिबानों को स्वयं से यह सवाल पूछना चाहिए कि जो मुसलमान सलमान रश्दी को ब्रिटिश सरकार द्वारा नाइटहुड यानी सर की पदवी दिए जाने से इसलिए खफ़ा हैं क्योंकि रश्दी को इस्लामी विरोधी लेखक के नाते मुस्लिम जगत में कुख्यात कर दिया गया है और उसकी हत्या का फतवा अभी भी वैध माना जाता है, वही मुसलमान अपनी ही मुस्लिम बिरादरी के एक व्यक्ति एम.एफ. हुसैन द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं के नग्न चित्र बनाने पर चुप क्यों रहते हैं? हुसैन अपनी इस हरकत से सेकुलर तालिबानों की वाहवाही लूटता है और वे इस्लामी संगठन जो रश्दी के सम्मान पर क्रुद्ध होते हैं, हुसैन के हिन्दू विरोधी चित्रों की प्रशंसा करते हैं।

मूलभूत मान्यता यह होनी चाहिए कि किसी भी आस्था और मत पर प्रहार करना उचित नहीं है और यदि ऐसा जानबूझकर किया जाता है तो उसके विरोध में लोकतांत्रिक ढंग से आवाज उठानी चाहिए। लेकिन जिस प्रकार की विकृत वोट बैंक राजनीति और मुस्लिम तुष्टीकरण को सेकुलरवाद का जामा पहना दिया गया है उससे यथार्थ सेकुलरवाद अर्थात् बहुलता का सम्मान और सर्वपंथ समभाव को ही चोट पहुंचती है। उधर रेवती मसूसाई अपने हिन्दुत्व की रक्षा के लिए मलेशिया में अकेले लड़ाई जारी रखे हुए है, उसका साथ कौन देगा?

भारत के मानवाधिकारवादी संगठन हों या धार्मिक संगठन, वे अपने ही देश में रेवतियों की रक्षा नहीं करने में कितने सफल हैं, कोई क्या बताए। कश्मीर के हिन्दुओं की दर्दनाक दास्तान फिल्मों, कहानियों, उपन्यासों और प्रदर्शनियों का विषय बनी लेकिन इन सबसे कश्मीरी हिन्दुओं को क्या राहत और सांत्वना मिली? इसी प्रकार मुस्लिमों के लिए आरक्षण, हिन्दुओं के मतांतरण का पोप प्रेरित अभियान और हिन्दू मंदिरों के तथाकथित सुधार के लिए नास्तिक कम्युनिस्टों के प्रहारवादी प्रयास बदस्तूर जारी ही हैं। हिन्दू क्या कर रहे हैं सिवाय शिकायतों के बही खाते भरने के? इसलिए रेवती को समझना होगा कि अगर वह हिन्दू है तो उसे अपनी लड़ाई अपने बूते पर ही लड़नी होगी।

लेखक: तरुण विजय
(पाञ्चजन्य से साभार)

5 comments:

Unknown October 2, 2009 at 4:02 AM  

सेकुलरों के मुँह पर पड़ने वाले तमाचों में एक की और बढ़ोतरी हुई… इस पोस्ट को पुनर्प्रकाशित करने के लिये धन्यवाद… जो लोग मलेशिया को "उदार मुस्लिम देश"(?) मानते हैं, उनकी आँखें खोलने के लिये पर्याप्त सामग्री है यह। इसी मलेशिया में पिछले दिनों एक मुस्लिम बस्ती में हिन्दू मन्दिर न बने इसलिये गाय के कटे हुए सिर को लेकर मुसलमानों ने प्रदर्शन किया था…।

["उदार मुस्लिम देश"(?)= कृपया मजाक न करें…]

चौहान October 2, 2009 at 4:08 AM  

Ye sabhi Milkar Desh Ko Duba Denge Congress Vetican City Ke Isare Par Kam Kar Raha Hai Aur Yaha Ke Leader Desh Ki Dalali

निशाचर October 2, 2009 at 7:40 AM  

मुस्लिम देशों को यदि कोई उदारवादी कहता है तो यह दुनिया का सबसे बड़ा मजाक है. इसलाम की नींव ही असहिष्णुता है. परन्तु असली प्रश्न है हमारे देश के कांग्रेस - कम्यूनिस्ट गठजोड़ के दोगलेपन का.यूँ तो कांग्रेस हमेशा ही हिन्दू हितों के खिलाफ काम करती रही है और वोट बैंक की राजनीति करते हुए एन - केन प्रकारेण सत्ता की जुगत में लगी रहती है लेकिन जबसे माइनो देवी की कांग्रेस पर पकड़ मजबूत हुई है हिन्दू हितों पर कुठाराघात तेज और दोतरफा हो गए हैं. देश के महत्त्वपूर्ण पदों पर (मंत्री से लेकर अफसर तक) इसाई लोगों को ही बैठाया जा रहा है, कांग्रेस शासित प्रदेशों में भी इसाई मुख्यमंत्री बन रहें हैं, क्या यह संयोग मात्र है?
दूसरी तरफ देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है, यह उदघोष लाल किले से किया जा रहा है. हिन्दू इस देश में दोयम दर्जे की जिंदगी जी रहा है क्योंकि वह बिखरा हुआ है. वह एकमुश्त वोट बैंक की तरह काम नहीं करता. वक़्त आ गया है की कांग्रेस-कम्यूनिस्ट गठजोड़ को समाप्त किया जाय. क्या हिन्दू आत्माहुति के लिए तैयार हैं?

Rakesh Singh - राकेश सिंह October 2, 2009 at 7:56 AM  

प्रस्तुति के लिए धन्यवाद |

बहादुर साह जफ़र के काल मैं नवाब लोग सतरंज के प्यादे के लिए तलवार निकल लेते थे पर अंग्रेजों से लड़ने के लिए समय नहीं था उनके पास | आज बिलकुल वही स्थति है हिन्दुओं की |

विलासिता, फैशन शो ... आदि के लिए मर-मिट रहे हैं पर क्या मजाल की हिन्दू या अपने रास्ट्र के लिए १ घंटे का भी समय दे दें ! उल्टे हिन्दुओं को ही गाली देता फिरता है ....

Meenu Khare October 12, 2009 at 7:30 PM  

बहुत खिन्न हो जाता है मन ऐसी घटनाओं पर.

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