Thursday, April 1, 2010

आर.जगन्नाथन: भारतीय धर्मनिरपेक्षता का खोखलापन

विशेष जाँच दल [SIT] के द्वारा नरेन्द्र मोदी की हुई पूछताछ के मीडिया कवरेज और अमिताभ बच्चन विवाद से भारतीय धर्मनिरपेक्षता का खोखलापन उजागर होता है. SIT के द्वारा मोदी को मात्र पूछताछ के लिए बुला लिए जाने से आत्ममुग्ध होने तथा 21 मार्च को उनके ना जाने से उपजी बौखलाहट से सिद्ध होता है कि कथित धर्मनिरपेक्षकों को न्याय से कोई सरोकार नहीं है, परंतु अपने निजी स्वार्थों से जरूर है.

भारत के पाखंडी धर्मनिरपेक्षकों ने क्षुद्र राजनीतिक कारणों की वजह से धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या का निजीकरण कर लिया है. धर्मनिरपेक्षता का अर्थ अब जो भी “संघ परिवार” की मान्यता हो उसका विपरित – ऐसा बना दिया गया है. जिस तरह से पाकिस्तान खुद को “भारत के विपरित” व्याख्यायित करता है, उसी तरह से धर्मनिरपेक्ष लोग खुद को “संघ परिवार से विपरित” के रूप में व्याख्यायित करते हैं. वे संघ को “दूसरे लोग” मानकर खुद को छलावा देते हैं.

मोदी पर कई बार आरोप लगते हैं – जो कुछ हद तक वैध भी हैं – कि वे अपने राज्य के हित को खुद के हित से जोड़कर देखते हैं. परंतु उनके आलोचक खुद उनके ही हाथों खेल रहे हैं. जब अमिताभ बच्चन को राज्य प्रवासन का ब्रांड अम्बेसडर बनने का न्यौता दिया गया तो उनपर अशिष्टता का आक्षेप लगा दिया गया. उनको आमंत्रण देने के पीछे मोदी का राजनीतिक एजेंडा हो सकता है, परंतु क्या सभी राजनेता ऐसा नहीं करते? क्यों ऐसा है कि, जो भी गुजरात को बढावा देने का प्रयत्न करता है वह धर्मनिरपेक्षकों के हमले का शिकार हो जाता है? यह वैचारिक उत्पीडन है.

अगर मोदी खुद को राज्य के रंग में रंग रहे हैं, तो “धर्मनिरपेक्ष” लोग अपनी निरी मुर्खता के साथ उनकी मदद कर रहे हैं. जो कोई भी राज्य के द्वारा नियुक्त किया जाता है उस पर प्रहार करके वे यह बात साफ तौर पर कह रहे हैं कि गुजरात के लिए काम करने का अर्थ मोदी के लिए काम करना है. इसलिए जब मोदी यह कहते हैं कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें गुजरात की अस्मिता को कुचल रही है तो सब उन पर भरोसा करते हैं.
अंधा विरोध कभी भी अच्छा नहीं होता. 2007 के गुजरात चुनाव से पहले, जयराम रमेश ने कहा था कि मोदी के नैतृत्व में राज्य के औद्योगिक विकास के पीछे मोदी का कम बल्कि गुजरातियों की औद्योगिक क्षमता का अधिक योगदान है – यह कुछ हद तक सही हो सकता है. लेकिन फिर यह कहना भी गलत नहीं होगा कि यूपीए सरकार के द्वारा हासिल औद्योगिक विकास ज्योर्ज बुश के वैश्विक विकास इंजिन की मदद से लोगों के द्वारा हासिल किया गया विकास है.

परंतु वंशवाद के समर्थक, रमेश, में इतनी हिम्मत नहीं होगी की वे इसे स्वीकार कर सकें. परंतु मोदी की उपलब्धियाँ दुषित की जाती रही हैं.

यह देखना भी कुत्सित लगता है कि मोदी का अनादर होने का कोई भी मौका देखते ही धर्मनिर्पेक्षकों के मूँह में पानी आने लगता है – जबकि उनकी प्राथमिकता न्याय होनी चाहिए. कोई इस बात का संज्ञान नहीं लेता कि बोफोर्स मामले में कभी भी राजीव गांधी को जवाब देने के लिए नहीं बुलाया गया था जबकि यह एकदम स्पष्ट था कि वे तथा उनके नजदीकी इस मामले से जुडे अघोषित संदिग्ध थे. बोफोर्स केस से जुड़े एक स्वीडिश अभियोक्ता ने आश्चर्य भी व्यक्त किया था कि इस घोटाले के लिए सोनिया गांधी से पूछताछ क्यों नहीं की गई – जबकि ओत्तेवियो क्वात्रोकी के साथ उनके भी संबंध थे. क्या यह आश्चर्य की बात हो सकती है कि क्वात्रोकी यूपीए शासन के दौरान चुपचाप निकल गए.

यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के लिए खेद व्यक्त किया था जबकि मोदी ने चुप्पी बनाए रखी. अपने आप से पूछिये: एक सीख प्रधानमंत्री द्वारा अपनी पार्टी द्वारा की गई सिख विरोधी तबाही के लिए माफी माँगना क्या वास्तव में कोई मूल्य रखता है? ऐसी क्षमा याचना से कोई फर्क नहीं पड़ता. बाबरी विध्वंस के लिए लालकृष्ण आडवाणी द्वारा “मेरे जीवन का सबसे दुखद दिन” वाली विलम्बित क्षमायाचना धर्मनिरपेक्षतावादियों लिए काफी नहीं थी, लेकिन 1984 के 20 साल बाद मनमोहन सिंह की माफी पश्चाताप का एक अद्भुत उदाहरण बन जाती है!

बच्चन प्रकरण का जहाँ तक प्रश्न है, सेक्युलर दलों के द्वारा उन्हे क्षमा मिलने की कोई सम्भावना नहीं है. वास्तव में तो वे दुगने दोषी है. निश्चित रूप से उनका पहला अपराध था कि वे गुजरात के लिए बल्लेबाजी करने में उतावलापन दिखा गए और उनका दूसरा अपराध था कि वे गांधी परिवार की नजरों में गिर गए थे. दोनों कारणों को मिलाकर देखें, तो उन्हे बख्शा नहीं जा सकता. यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी के मूर्ख तत्व उनसे सभी प्रकार के स्पष्टीकरण मांगने में व्यस्त हैं, जबकि रतन टाटा, मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी – जैसे व्यापारियों – जिन्होनें सीधे सीधे मोदी की प्रशंसा की थी – की तरफ किसी का दूर दूर तक ध्यान नहीं गया. यह बात अमिताभ ने अपने ब्लॉग में भी लिखी है.

मोदी को 2002 के दौरान उनके द्वारा किए गए या ना किए गए कार्यों के लिए सजा नहीं मिलनी चाहिए या अभियोग नहीं लगाना चाहिए यह कोई तय नहीं कर सकता है. परंतु उनपर मीडिया के द्वारा पहले से ही अभियोजन लग चुका है और उन्हें दोषी भी मान लिया गया है. यदि यह भी मान लिया जाए कि 8 साल पहले जो कुछ भी ऐसा जो अवर्णीय है वह राज्य में हुआ और उस पर यह काव्यात्मक न्याय करने की शैली है तो भी, यह एक पक्षीय धर्मनिरपेक्षता का बहाना नहीं बन सकती.

हैंस क्रिश्चियन एंडरसन (Hans Christian Andersen) की अमर कथा में उल्लेख किया गया है कि कैसे एक मासूम बालक एक सम्राट को बताता है कि उसने कपड़े नहीं पहन रखे हैं. सम्राट के दर्जियों के द्वारा उसे बताया जाता है कि उन्होनें सम्राट के लिए दिखाई ना देने वाले कपड़े बनाए हैं. ये कपड़े उन लोगों को नहीं दिखेंगे जो “मूर्ख” होंगे. चुँकि सम्राट खुद को “मूर्ख” के रूप में चिह्नित किया जाना नहीं चाहता है, इसलिए वह ऐसा प्रदर्शन करता है मानो उसने कपड़े पहन रखे हैं जबकि वह एकदम नग्न होता है.

ऐसा लगता है कि “धर्मनिरपेक्ष” लोग भी एकदम नग्न हैं – और उन्हें इसका कोई आभास ही नहीं है.

(यह लेख जगन्नाथन के अंग्रेजी लेख जो डी.एन.ए. में कॉलम के रूप में छपा था, का हिन्दी अनुवाद है)

6 comments:

arvind April 1, 2010 at 1:27 AM  

कथित धर्मनिरपेक्षकों को न्याय से कोई सरोकार नहीं है, परंतु अपने निजी स्वार्थों से जरूर है.
......bilkul sahi. sahamat hun.

चलते चलते April 1, 2010 at 1:59 AM  

धर्म निरपेक्ष की परिभाषा क्‍या है। दुनिया में कोई निरपेक्ष नहीं होता। मोदी और बच्‍चन को लेकर जो आलोचना हो रही है वह बकवास है। बच्‍चन यदि कांग्रेस से जुड़े रहते तो उन्‍हें सुहाने लगते। मोदी इसलिए अच्‍छे नहीं है क्‍योंकि वे राज्‍य को काफी आगे बढा़ चुके हैं और भारत में हर कोई गुजरात के विकास का उदाहरण सामने रखता है। धर्म निरपेक्ष लोगों की वजह से ही हिंदुस्‍तान की लुटिया डुबती है।

चलते चलते April 1, 2010 at 2:01 AM  

धर्म निरपेक्ष की असली परिभाषा में बता देता हूं। बगैर मां बाप की संतान यानी परखनली शिशु।

सूबेदार April 1, 2010 at 2:44 AM  

sekular mane desh drohi.
bahut acchha lekh hai .

Jeet Bhargava April 1, 2010 at 12:44 PM  

Excellent Article. Kudos To Natraj For Translating This Rare Piece of Writing in Hindi.

RAJ SINH April 3, 2010 at 1:56 PM  

इन सेक्यूलरों का आर्थिक खाता जांच लें कि कौन कहाँ से कहाँ पहुंचा है तो जगजाहिर हो जायेगा कि ये बीके हुए देश द्रोही हैं.
चरण भान्त भी इनसे ज्यादा इज्जतदार मिलेंगे.
ये सब के सब भारत के शत्रुओं और रोमराज्य के वेतन भोगी दलाल हैं जो सरकारी तिकड़म से महत्वपूर्ण बने हैं ,बिकी मीडिया के सहारे .
अकेले तीस्ता सीतलवाद की जांच कर लें सब का सत्य उजागर हो जायेगा .
जागो भारत जागो !

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