जो सरे-बजार पुछा आपने
बापू माफ करना मगर जब सरे-बजार पुछ ही लिया है तो बताना ही पड़ेगा। वरना इस प्रकार के फसाद में कौन पड़े.?
भाई बजारवाले, आपने जो टिप्पणीयाँ दी है उसमें आपने मेरे नाम का सन्धि-विच्छेद कमाल का किया है। नटराज को नट बना दिया। मगर यह केवल आपकी दुषीत मानसिकता ही दर्शाता है, जब और कुछ न बन सके तो विभिन्न प्रकार की मुखाकृतियाँ बना कर खिजाओ और मजे लो, नाम बिगाड़ना भी इनमें से एक है। जैसे आपको बजारवाला न कह कर बाजारू कहूँ, मगर मैं गिरा हुआ इंसान नहीं हूँ, इसलिए ऐसा नहीं कहूँगा।
आपने आगे लिखा है
अब रेल गाड़िया तो गुजरात में भी जलाई जाती है और लोग वहाँ भी मारे जाते हैं
.. अंतर इतना ही है की एक रोटी के लिए करता है और दूसरा धर्म के लिए , लगता है आपको
रोटी की ज़रूरत नही ..
क्या कमाल की बात लाएं है!! रोटी की भला किसे जरूरत नहीं होगी? सभी को है। मगर क्या सभी हिंसक रास्ते से रोटी का जुगाड़ करते है? रेले जला कर रोटी कमाने का समर्थन आप जैसे प्रखर बुद्धी वाले लोग ही कर सकते है, जिनके लिए सत्ता ही नहीं रोटी भी बन्दूक की नोक से निकलती है। हम तो मेहनत कर कमाते-खाते है।
फिर आप लिखते है
लगता है कि शाखा वालो से आपको काफ़ी प्यार है नट राज जी महाराज
ना भाई ऐसा कोई प्यार नहीं उमड़ रहा, मगर जब मल्बे में दबे पड़े थे, जो हाथ सबसे पहले सहायता के लिए आया था, वह एक खाकी पेंट वाले का था। देश की अर्थव्यवस्था को पंक्चर करने पर उतारू लाल झण्डे या सेवादल (कौन है, यह?) वाले कहीं आस-पास भी दिखे नहीं.. तो थोड़ी बहुत सहानुभूति तो होनी स्वभाविक ही है ना।
3 comments:
सच कहा भाई… जब मोहल्ला की शुरुआत हुई तो लगा की शहर की ओर रुख है मगर यह तो वही का नुक्कड़ निकला…पान दबाया कमेंट किया और चल दिये बिन राह के…।
डम्ड्ड डम्ड्ड डम्ड्डडं निनाद वड्ड मर्वयं चकार चण्ड ताण्ड्व तनोतु नः शिवः शिवं । आदिदेव भगवान शंकर के शब्द रुपी चिठ्ठे का स्वागत ।
अरे नट+राज जी, ये बजारवाले कौन हैं? कोई लिंक/हाइपर लिंक दिया होता तो पता चलता.
Post a Comment