बहसी दरिंदो का देश
अगर उनकी बात सही माने तो भारत में एक ऐसा प्रांत है जहाँ के लोग महा हिंसक प्रवृति के है. सहनशील तो कदापि नहीं. वहाँ का शासक कानून से उपर की कोई चीज है. पुलिस तो आये दिन मासूमो का एनकाउंटर करने की ताक में रहती है. न्यायालय जैसी चीज भी शायद ही हो.
आप कहेंगे ऐसा कौन-सा प्रांत हो गया?
गुजरात.
यहाँ की प्रजा उनकी दृष्टि में शांत, समृद्ध व वेपारी नहीं बल्कि हिंसक व धर्म-जुनूनी है. यहाँ का शासक चुन कर नहीं बल्कि तानाशाही से आया है. भले ही यहाँ के विपरीत अन्य प्रांतो में लोग बुथ-केपचरींग, बन्दूक, शराब या प्रचार में रंडीया नचवा कर जीतते हो.
एनकाउंटर भले ही उत्तरप्रदेश के 172 के मुकाबले 2 ही हुए हो, उनकि दृष्टि में ऐसी बेहसी पुलिस सारे भारत में कहीं नहीं जो अपराधी का एनकाउंटर करती है.
हिन्दूत्व के बहाने गुजरात पर लानते फेंकने वालो कहीं इसके पीछे यह दर्द तो नहीं की अपनी जनता तो जिस विचारधारा के बल पर स्वर्ग उतार देने का स्वप्न दिखाया था, वह पूरी दुनिया में पीट चुकी है, और अब अपने ही लोगो पर गोलियाँ चलाने की नोबत आ गई है. रोटी के लिए लोगो को बरगला कर बन्दूकें थमाने वालो, किस मुहँ से हिंसा का विरोध करते हो?
दोस्तो गुजरात कोई अनोखा नहीं है. यहाँ भी उतने ही बेईमान होंगे जितने अन्य भारतीय, इतने ही हिंसक होंगे जितने अन्य भारतीय, उतनी ही भावनाएं आहत होती होगी जितनी अन्य भारतीयों की. फिर निशाना क्यों ताका जाता है. अगर यहाँ लाल झण्डे की दाल नहीं गलती तो उन्हे खुद सोचना है की ऐसा क्यों हो रहा है?
सिख गुजरात में उपद्रव नहीं कर रहे. प्रेस गुजरात में नहीं जलाई गई. वैसे ही दंगो का इतिहास भी अखिल भारतीय है.
अंत में बता दूं यह कोई विचार नहीं है. कोई बात नहीं है, यह तो किसी के अनुसार लात है. क्योंकि सोचने समझने की क्षमता तो प्रभु ने उन्हे ही दी है.
7 comments:
लिखते रहो भाई सही जा रहे हो जरा हम भी देखना चाहते है क्या जवाब आता है
आप गुजरात के बारे में लिखते रहें। मैं जानता हूँ कि हिन्दी भाषी प्रदेशों के मुकाबले गुजरात में कानून और व्यवस्था की स्थिति बेहतर है। आप सही कहते हैं जहाँ पर निजी सेनाएँ बनी हैं, जहाँ सबसे अधिक जातिवाद है, जहाँ सबसे अधिक भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी है, जहाँ पर सबसे अधिक हिन्दू-मुस्लिम दंगे होते हैं, जहाँ आज भी दहेज का बोलबाला है, जहाँ आज भी गर्भस्थ कन्या को मार दिया जाता है, जहाँ आज भी दलितों और स्त्रियों की हालत दयनीय है, वहाँ के लोग अपने गिरेबान में झाँक कर नहीं देखते और केवल गुजरात को कोसते हैं। इतने ही समाजसेवी हैं तो अपने ही प्रदेश का उद्धार कर लें जहाँ वे रहते हैं। इतनी दूर गुजरात क्यों जाते हैं।
अतुल शर्मा
http://malwa.wordpress.com
आपके ब्लॉग के साइड बार मे आपने नारद का लिंक नही दिया है, उसे प्रदान करें। किसी भी प्रकार की सहायता के लिए यहाँ देखें।
अगर किसी ने गुजरात राज्य के बारे में कोई अपमानजनक टिप्पणी की है तो उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। लेकिन स्वयं गुजराती जन भी आजकल गुजराती अस्मिता की परिभाषा ऐसे कर्मों के साथ ही जोड़कर क्यों करने लगे है, जो संसार के किसी भी सभ्य समाज के मानदंडों पर धतकरम ही माने जाएंगे- यह बात किसी भी छोर से मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है।
यह भारत की दुविधा है…जो आज शारीरिक रुप में व्यक्त हो रहा है…।
अरे भाऊ यह धर्म निरपेक्ष देश है तुम बी गुजरात को गाली निकालो
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