कोई ना सम्भले तो?
उन्हे जल्दी गुस्सा आता है, मगर कभी किसी पर हाथ नहीं उठाया. यानि बड़े भाई हिंसक नहीं है :)
कल उन्होने लिखा “सम्भल जाओ अविनाश”. और अपने तो मजे लेने लगे. देखने लगे कौन क्या प्रतिक्रिया देता है. पर मजा नहीं आ रहा था.
आज सुबह जागा और सीधे नारद पर गया. देखा, अग्निखोर ने पुछ ही लिया कि नहीं सम्भले तो?
हमारी भी जानने की इच्छा थी की, वर्ना क्या?
तो फोन घुमाया भाई को. ओफिस आ गए थे. मैने कहा कि वो अग्निखोर जानने के लिए जल रहा है की अगला न सम्भला तो क्या कर लोगे?
जवाब मिला, कोई जले या बुझे मुझे जिसे, जो, जैसे कहना था कह दिया. गिरते को सम्भलने के लिए कहा है. नहीं सुनेगा तो उल्टे मुँह गिरेगा. अब सुबह सुबह मुझे कई काम निपटाने है. फोन रखो. सबको जवाब देना ही मेरा काम नहीं है.
जवाब सुन सारा उत्साह ठंडा हो गया.
3 comments:
लगता है हिन्दी चिट्ठकारों का ध्रुवीकरण हो रहा है. ध्रुवीकरण हो मगर वैचारिक आधार पर. व्यक्तिगत स्तर पर नहीं.
अग्निखोर नहीं नटराज जी, अगिनखोर.
विशेष ठीक कह रहे हैं।लेकिन चिट्ठाकारों की संख्या बढ जाए तो शायद यह समस्या ्कुछ कम हो ।
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