google.co.in बोले तो 16X16 का आइकोन
जब भी गूगल खोलने की कोशिश की उसका 16 गुणा 16 का आइ-कोन ही पाया. ऐसा हमारे ही साथ है या तकनीकि लफड़ा है?
खुला है तिसरा नेत्र
जब भी गूगल खोलने की कोशिश की उसका 16 गुणा 16 का आइ-कोन ही पाया. ऐसा हमारे ही साथ है या तकनीकि लफड़ा है?
अलगाववादी नेता हिलाल वार ने अपनी किताब में रुबिया सईद अपहरण को लेकर एक नया खुलासा करते हुए आरोप लगाया है कि यह सिर्फ एक ड्रामा था जो तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जेकेएलएफ के कमांडर यासीन मलिक के साथ मिलकर रचा था।
अब देखना है राष्ट्रवादियों को दिन-रात गरियाने वाला कथित सेक्युलर मीडिया और एन.जी.ओ वाले क्या कहते है.
पूरी खबर यहाँ पढ़ें.
Read more...एनकाउंटर के मामले में मोदी पर मेडम ने सच ही आरोप लगाये है. ये वीडियो देखें और शोहराब्बुद्दीन के चाहने वालो को शाबासी दें.
भाग 1
http://www.youtube.com/watch?v=hN6MK3eLdhA&feature=related
भाग 2
http://www.youtube.com/watch?v=MVV3VRUBPTA&feature=related
भाग 3
http://www.youtube.com/watch?v=fa6xiyZfjUE&feature=related
भाग 4
http://www.youtube.com/watch?v=Vjk0v9ZPTKM&feature=related
भाग 5
http://www.youtube.com/watch?v=Rnn5eDbxUqk&feature=related
भाग 6
http://www.youtube.com/watch?v=Qu68G3h2vDM&feature=related
एक डायलोक बड़ा प्रसिद्ध हो रहा है, "न खाता हूँ न खाने देता हूँ" यह कहना है गुजरात के मुख्यमंत्रि नरेन्द्रभाई मोदी का. लोगो को मजा आ रहा है, इसको अपनी रिंगटोन तक बना रहे है. मगर कुछ लोग परेशान है. पत्रकार पुछते फिर रहे है कि मोदी ऐसा क्यूँ कह रहे है. विनोद दूआ साब परेशान हो रहे है , उनके माफिक कोई बोल नहीं रहा. तो बार बार पुछ रहे थे की मोदी अपना ढ़ींढ़ोरा क्यों पीट रहे है?
अपना कहना है की वे पीट सकते है इसलिए पीटते है. है हिम्मत तो लालूजी, मुलायमजी, मायाजी, जयाजी और भी तमाम जी.. ऐसा बोल कर दिखाये की न खाते है न खाने देते है, और फिर जनता इस पर विश्वास भी करे तो जाने.
Read more...इस बार ऐसा क्या हुआ? वामपंथी वैसे भी अल्पसंख्यको का विशेष ध्यान रखते है. देशद्रोह की हद तक जा कर बंगलादेशीयों को संरक्षण मिलता रहा है. नंदीग्राम में जो हुआ सो हुआ मगर खुद वामपंथी ही अपनी विचारधारा से उपर उठ कर नंदीग्राम वासीयों के साथ खड़े दिखे. उन्हे अकेला नहीं छोड़ा, वे कोई कश्मीरी पंडित या गोदरा में मरने वाले तो थे नहीं जो कोई आंसू बहाने वाला ही ना मिलता. एक पूरी जमात उनके लिए लिखने, दिखाने, प्रदर्शन करने सड़क पर उतर आयी. और कोई क्या कर सकता है? न्याय के लिए लोकतांत्रिक तरीके से लड़ ही तो सकते है.
ढ़ाई आखर वाले भाई ने कहा अंतर बताओ, फिर तुलना करने लगे. उन्होने समानता बताई, हम अंतर बताय देते है.
बूद्धदेव बेशर्मी से जो हुआ उसे जायज बताते है, नरेन्द्रभाई में इतनी शर्म है.
नरेन्द्र भाई के नैतृत्व में गुजरात “द्रुतगामी मार्ग” जैसा है, बुद्धदेव का बंगाल गतिअवरोधक समान है.
गुजरात की विकास दर सकल भारत की तुलना में ज्यादा है, बंगाल एक बन्द प्रदेश है.
नरेन्द्रभाई के गुजरात में लोग भूखे नहीं मरते, बुद्धदेव के बंगाल में खाने को लेकर दंगे होते है.
नरेन्द्रभाई विकास के नाम पर चुनाव लड़ते है, बुद्धदेव इसी मुद्दे पर लड़कर दिखाये.
गुजरात में मुसलमानों के पास हिन्दुओ से ज्यादा जमीन है, अन्य प्रांतों के मुकाबले ज्यादा समृद्ध है, बुद्धदेव के राज्य में उनकी आर्थिक स्थिती कैसी है? पता कर लो.
बाकि समानताएं तलाशनी हो तो गधे और ब्लॉगर में भी बहुत सी समानताएं है, तो दोनो एक है?
Read more...हाल ही में मुंबई में संपन्न विश्व स्तरीय सैनिक खेलों के आयोजन में 19 देशों के सैनिक मुंबई आए और यहाँ उन्होंने विभिन्न खेलों में भागीदारी की। खेलों के बाद जब भी अलग-अलग देशों के सैनिक खाने के दौरान या विश्राम के क्षणों में आपस में मिलते थे तो अपने ही देश की भाषा में बात करते थे, जबकि ऊँचे ओहदों पर बैठे भारतीय सेना के अधिकारी अंग्रेजी में बात करते थे। कई बार तो बाहर से आए सैनिक अधिकारियों ने यह जानने की भी कोशिश की कि भारत के सैनिकों की भाषा कौनसी है, मगर खिसियाए भारतीय अधिकारी कुछ जवाब नहीं दे पाते थे।
जयपुर के श्री दीपक महान 'दूरदर्शन की ओर से इन खेलों के सीधे प्रसारण का आँखों देखा हाल बताने के लिए मुंबई आए थे, इस दौरान उन्होंने जो कुछ महसूस किया उससे वे इतने व्यथित हुए कि अपनी पीड़ा यहाँ व्यक्त की है.
मूल लेख हिन्दी मीडिया पर छपा है, हिन्दी की व्यथा पर आपका ध्यानाकर्षण हेतू यहाँ लिंक दी गई है.
Read more...राजतीलक की तैयारी करें, भारत के अगले शासक ने सिंहासन की तरफ एक और कदम बढ़ा दिया है. महामंत्री बन गये है.
बात कर रहें है, आजाद भारत के प्रथम राजवंश की अगली पीढ़ी की. त्यागमूर्ति के पूत्र राहूल गाँधी की. लोकतंत्र है, जनता जिसे चाहें सिंहासन दे, हम कौन होते है कुढ़ने वाले?
अब हमारे बाप-दादाओं ने कहाँ उनके बाप-दादाओं की तरह देश की सेवा करते हुए गोलियाँ खायी, फाँसी पर झूल गए या काले पानी की सजा पायी. सेवा की है तो मेवा भी खाएंगे ही ना.
ऐसी ही सेवा गाँधीजी, सुभाषजी, भगतसिंहजी, सावरकरजी, मौलाना आजादजी, बिस्मिल्लाजी जैसे लोगो ने की होती तो उनके वंशज भी मेवा खा रहे होते. ना की बहादूरशाह जफ़र के वंशजो की तरह चाय का ठेला लगा रहे होते.
रोमांचक मैच, और भारत की जीत. जश्न के माहौल में सारा भारत डूब गया. धर्म, प्रांत, भाषा की दीवारें ढह सी गई. सचमुच भारतीयता जीत गई.
हार के बाद पाकिस्तानी कप्तान ने अपने देश से माफी माँगी साथ ही पूरी दुनिया के मुस्लिम-लीग से भी माफी माँगी. पाकिस्तान से माफी माँगना तो समझमें आता है मगर समग्र विश्व के मुस्लिम समुदाय से कैसी माफी? क्या यह कप भी “इस्लामिक-बम” की तरह “इस्लामिक कप” होता? क्या पाकिस्तान सारे मुसलमानों का झण्डाबदार है? किस हद दर्जे की कट्टरता और घटीया सोच की घूँटी पिलायी जाती है, इन्हे. इस प्रकार तो हमारे पठान बन्धू इस्लाम के अपराधी हो गए, जिन्होने देश के लिए पाकिस्तान की तरफ से इस्लाम को मिलने वाले जीत के तौहफे से वंचित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.
कहीं यही वजह तो नहीं जो कई जगह (आज के अखबारों की खबरों के अनुसार) जश्न मनाते लोगो पर पाकिस्तानी हार से खिन्नाये लोगो ने पत्थरबाजी की.
तब तो कहना ही होगा, धर्मनिरपेक्ष भारत की इस्लामी कट्टरता पर जीत हुई. मनाओ जश्न.
अरे रे रे परवेज भाई ये क्या लिख दिया की “हां तो भाई राम जी एक फिर ख़तरे मे है।“ ना भाई ना. राम को खतरा ना है, खतरा तो रामसेतु को है।
“एक बार 'बाबर' ने पंगा ले लिया था।“
बाबर क्या खा कर राम से पंगा लेता भला। लाचार हारे हिन्दुओं को उनकी औकात बता दी थी, बस। हजारों मन्दिर ध्वस्त हुए, साथ में रामजी का मन्दिर भी ध्वस्त हो गया।
“बाबर कि निशानी पर चढ़ कर उसे उसकी औकात बता दी।“
बाबर की बर्बरता की निशानी कहो...ज्यादा सही रहेगा.
”भगवा झंडे वालो ने हजारो देशद्रोहियों को उनकी औकात बतायी थी।“
बुरा मत मानना, बात कुछ हजम नहीं हुई।
“ये भूल गए कि इन्होने एक बार नारा दिया था कि" मंदिर वही बनायेंगे"।“
धन्यवाद याद दिलाने के लिए। दम हुआ तो बना लेंगे।
“ये फिर दुबारा राम को बचाने का ठेका ले रहे है।“
रामजी को कौन बचा सकता है? ये तो बात सेतु की है जो हमारा कर्तव्य है, अपनी धरोहर बचाना। भारत में है तो हाथ-पैर मार रहे है। अफगान में होता तो क्या कर लेते?
" काठ कि हांडी बार बार नही चढती"
राम का नाम काठ की हांडी नहीं है, मुन्ना।
हजारों लोगों की भीड़ बेसब्री से एक बड़े से मंच के पास किसी का इंतज़ार कर रही है। मंच के आसपास से शंख, ढोल और तबले की आवाज के बीच खिचड़ी दाढ़ी वाला, लंबा सा कुरता पहने एक हाथ में माईक लिए और दूसरे हाथ में ब्रश लिए एक युवक आता है और भारत माता की जय का नारा लगाकर कविता पढ़ना शुरु करता है। उसके एक हाथ में माईक है और दूसरे हाथ में ब्रश है, वह पूरी ऊर्जा से अपनी कविता पढ़ रहा है और साथ में वह पलक झपकते ही महाराणा प्रताप, शहीद भगत सिंह, शिवाजी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, लोकमान्य तिलक जैसे वीर योध्दाओं के चित्र बनाता जाता है। कार्यक्रम का क्लाईमैक्स तब आता है जब वह युवक भारत माता का चित्र बनाता है।
इस युवक का नाम है सत्यनारायण मौर्य और इसके फक्कड़ रहन सहन की वज़ह से प्रशंसकों ने इसे 'बाबा' नाम दिया है। मध्यप्रदेश के राजगढ़ शहर का यह युवक अपनी चित्रकला की पढ़ाई के लिए जब गाँव से पहली बार उज्जैन जैसे बड़े शहर में पहुँचा था तो वहाँ उसके पास जेब खर्च तो दूर अपनी पढ़ाई पूरी करने तक के लिए पैसे नहीं थे मगर धुन के पक्के इस युवक ने वहाँ लोगों के साईन बोर्ड, बैनर और पोस्टर लिखकर और अपने से जूनियर छात्रों को पढ़ाकर अपनी पढ़ाई पूरी की और विक्रम विश्वविद्यालय से चित्रकला में स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया। मगर आज यही युवक इस बात को गर्व से कहता है कि मैंने झूठी डिग्री हासिल करने के लिए झूठी पढ़ाई की, अगर मैं उस वक्त इस पढ़ाई का विरोध करता तो मुझे अनुत्तीर्ण कर दिया जाता। इस युवक को मैकाले की शिक्षा रास नहीं आई और लोगों को जागरुक बनाने के लिए उसने अपना खुद का माध्यम चुना-चित्रकला और कविता। आज इस फक्कड़ कवि ने दुनिया भर में अपनी पहचान बना ली है।
(यहाँ रमताजोगीजी के लेख का अंश लिया गया है. फक्कड़ बाबा के बारे में और अधिक यहाँ पर पढ़ सकते है. )
अंकल अंकल ये हेस्टोरिकल परसन कैसे होते है?
बेटा, इतिहास पुरूष संवेदनशील, सम्मानित और बहुपक्षीय सोच वाले होते थे. मगर आने वाले युग पुरूष जरा अलग किस्म के होंगे.
ये कैसे होंगे अंकल?
बेटा अब इतिहास में उन्ही का नाम लिखा जाएगा, जो अपने आप को ही सही समझेंगे तथा दूसरों को गलत साबित करने में अपनी उर्जा लगा देंगे.
अभी पूरा क्लियर नहीं समझा अंकल, और गुड़-थिंग बताओ हेस्टोरिकल परसन की.
बेटा वे अपने जैसो के अलावा किसी को मनुष्य नहीं समझेंगे.
और अंकल
और वे गालियों को संस्कार मानेंगे.
और अंकल
और बेटा इनमें से कुछ किसी को मारने की धमकी देगें और कुछ उनका समर्थन करेंगे.
बस अंकल इतना ही काफी है. मैं समझ गया हमारे इतिहास पुरूष कैसे होंगे.
मामला एकदम सिधा व सरल सा है. एक चिट्ठे ने नारद के नियमो का उलंघन किया, उसे नारद से हटा दिया गया. यह नियम सब पर बराबरी से लागु होता है. किसी को भी कहीं भी लगता है की कोई चिट्ठा इन नियमो को भंग कर रहा है तो आप शिकायत कर सकते है, तुरंत कार्यवाही जरूर होगी.
मगर दुःख की बात है लगातार हर तीसरी पोस्ट में नारद पर हमला हो रहा है. नारद को तानाशाह, व्यक्ति केन्द्रित, साम्प्रदायिक व न जाने क्या क्या कहा जा रहा है. यह अत्यंत दुःख के क्षण है.
नारद की कार्यवाही से दुःखी चन्द लोग जहाँ नारद पर तीखे हमले कर रहे है, इस कार्यवाही के पक्षधर बहूसंख्यक चिट्ठाकार मौन है. इसका कारण उनका शरीफ होना है जो विवादो से दूर रहना चाहते है. इसे किसी की कमजोरी न मानी जाय. सच्चाई यह है की मुश्कील से दस लोगो के मुकाबले भारी संख्या में चिट्ठाकार नारद की कार्यवाही के पक्ष में है.
नारद को भला बुरा कहने वाली पोस्टे नारद पर दिख रही है, क्या यह साबित नहीं करता है की नारद तानाशाह नहीं है.
बात का बतंगड़ बनाना वाम पंथीयो को खुब आता है. अपनी गलती को तो स्वीकारते नहीं उपर से बात कहाँ से कहाँ पहूँचा कर विवाद खड़ा करना चाहते है. नारद के लिए चन्दा एकत्र करने की बात यहाँ कहाँ से बीच में आ गई, समझना मुश्किल है.
नारद व बेंगाणी बन्धूओं के साथ साथ जितुभाई व अनुपजी पर भी झूठे आरोप लगा कर उनकी छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है.
कहते है संजय बेंगाणी टिप्पणीयों में गाली गलौच करता है, एक भी ऐसी टिप्पणी दिखा दिजीये, मैं खूद संजय बेंगाणी की शिकायत नारद पर करने को तैयार हूँ.
कहते हैं बेंगाणी नारद को चन्दा देते रहते है, इसलिए उनका पक्ष लिया जाता है, तो कोई भी चन्दादाताओं की लिस्ट उठा कर देख सकता है, बेंगाणीओ ने एक भी धेला दिया हो तो. फिर ये नारद पर हमला करने वाले झूठ पर झूठ क्यों बोले जा रहे है समझमें नहीं आता. शायद हीटलर का वह सिद्धांत इन्होने आत्मसात कर लिया है की एक झूठ को बार बार दोहराओ वह सच लगने लगेगा.
वस्तुतः यह वैचारिक नहीं संस्कारीक टकराव है. संस्कारी लोग मौन है, कलहप्रिय लोगो को भड़ास निकालने का जरिया मिल गया है.
हजार कोशिश कर लें अनुप शुक्ला, जितेन्द्र चौधरी व बेंगाणी बन्धूओ की छवि जो सैंकड़ो चिट्ठाकारों के मन में है उसे खण्ड़ीत नहीं किया जा सकेगा.
वैसे ही आप एक फीड एग्रीगेटर तो दस मिनटों में बना सकते है मगर नारद नहीं.
अजगर बरसाती
एक लघू कथा
कोलकाता का मेटीआ ब्रुज़ इलाका, सन 1991.
बच्चा माँ की छाती से चिपटा पेट की भूख शांत करने की कोशिश कर रहा था. तभी हल्ला हुआ. भगदड़ मची. अल्लाहो अकबर के नाद के साथ तलवारें लहराता कहर बरसा. बच्चा छीन लिया गया, सदा के लिये. पल भर में माँ की छातियाँ सड़क पर कटी पड़ी थी. एक सैलाब किकियारीयाँ करता आगे बढ़ गया.
वे पसीने से सने हुए थे. तलवारे लहू से भरी हुई, मगर अभी भी प्यासी.
”साले का काट कर उसकी जनानी के हाथ में रख दिया”
टहाको से वातावरण में भय पसर गया.
”उसके बाद उसके साथ जो किया उसकी रूह भी कभी लौट कर सवाल नहीं करेगी”
”इंसा-अल्लाह, जन्नत में हूरे प्रतिक्षा कर रही है”
”मैं तो बोलता हूँ, सालो को और अच्छा सबक सिखाया जाना चाहिए, जैसे पाकिस्तान लिया, हिन्दोस्तान में भी शरीयत का कानून लागु हो जाये तो रोज रोज का टंटा मीटे.”
शरीयत के कानून की बाते सुन कई जनाना रूहे मूगलिया काल को याद कर काँप उठी.
वे अब कभी यहाँ इस देश में लौटना नहीं चाहेंगी.
वड़ोदरा में हंगामे के साथ एक चित्रकार की पेंटींगो को हटा दिया गया. यह कला का गला घोंटना था. मगर अपने पास भी ब्लोग जैसे माध्यम है. तो लिजीये पेश है महान कृतियों मे से दो चित्र.
आप कलाकार है तो आप इसमें छीपी भावना समझ ही जएंगे, तो ताली बजा कर कलाकार का उत्साह बढायें. आप कलाकार नहीं है तो अपने आप को बेवकुफ मत कहलवायीये, साथ साथ तालियाँ बजाईये की क्या महान कलाकारी है.
चित्र एक : कई देवताओं के मुख है, किसका चित्र माने. बाकि कुछ लिख नहीं सकता खुद ही देख लें.
चित्र दो : यह चित्र कहते है दूर्गा का है. मेरी नजर में तो प्रसवपीड़ा से गुजरती महिला का मजाक ही है.
ये चित्र खाश उन लोगो के लिए रखे जिनके अनुसार एक फासिस्ट सरकार द्वारा कला का गला घोंटा जा रहा है. मैं उनसे इस कला को समझना चाहता हूँ.
संजय भाई वो हिन्दी में क्या बोलते है? गरयीयाना मत.
उन्हे जल्दी गुस्सा आता है, मगर कभी किसी पर हाथ नहीं उठाया. यानि बड़े भाई हिंसक नहीं है :)
कल उन्होने लिखा “सम्भल जाओ अविनाश”. और अपने तो मजे लेने लगे. देखने लगे कौन क्या प्रतिक्रिया देता है. पर मजा नहीं आ रहा था.
आज सुबह जागा और सीधे नारद पर गया. देखा, अग्निखोर ने पुछ ही लिया कि नहीं सम्भले तो?
हमारी भी जानने की इच्छा थी की, वर्ना क्या?
तो फोन घुमाया भाई को. ओफिस आ गए थे. मैने कहा कि वो अग्निखोर जानने के लिए जल रहा है की अगला न सम्भला तो क्या कर लोगे?
जवाब मिला, कोई जले या बुझे मुझे जिसे, जो, जैसे कहना था कह दिया. गिरते को सम्भलने के लिए कहा है. नहीं सुनेगा तो उल्टे मुँह गिरेगा. अब सुबह सुबह मुझे कई काम निपटाने है. फोन रखो. सबको जवाब देना ही मेरा काम नहीं है.
जवाब सुन सारा उत्साह ठंडा हो गया.
अगर उनकी बात सही माने तो भारत में एक ऐसा प्रांत है जहाँ के लोग महा हिंसक प्रवृति के है. सहनशील तो कदापि नहीं. वहाँ का शासक कानून से उपर की कोई चीज है. पुलिस तो आये दिन मासूमो का एनकाउंटर करने की ताक में रहती है. न्यायालय जैसी चीज भी शायद ही हो.
आप कहेंगे ऐसा कौन-सा प्रांत हो गया?
गुजरात.
यहाँ की प्रजा उनकी दृष्टि में शांत, समृद्ध व वेपारी नहीं बल्कि हिंसक व धर्म-जुनूनी है. यहाँ का शासक चुन कर नहीं बल्कि तानाशाही से आया है. भले ही यहाँ के विपरीत अन्य प्रांतो में लोग बुथ-केपचरींग, बन्दूक, शराब या प्रचार में रंडीया नचवा कर जीतते हो.
एनकाउंटर भले ही उत्तरप्रदेश के 172 के मुकाबले 2 ही हुए हो, उनकि दृष्टि में ऐसी बेहसी पुलिस सारे भारत में कहीं नहीं जो अपराधी का एनकाउंटर करती है.
हिन्दूत्व के बहाने गुजरात पर लानते फेंकने वालो कहीं इसके पीछे यह दर्द तो नहीं की अपनी जनता तो जिस विचारधारा के बल पर स्वर्ग उतार देने का स्वप्न दिखाया था, वह पूरी दुनिया में पीट चुकी है, और अब अपने ही लोगो पर गोलियाँ चलाने की नोबत आ गई है. रोटी के लिए लोगो को बरगला कर बन्दूकें थमाने वालो, किस मुहँ से हिंसा का विरोध करते हो?
दोस्तो गुजरात कोई अनोखा नहीं है. यहाँ भी उतने ही बेईमान होंगे जितने अन्य भारतीय, इतने ही हिंसक होंगे जितने अन्य भारतीय, उतनी ही भावनाएं आहत होती होगी जितनी अन्य भारतीयों की. फिर निशाना क्यों ताका जाता है. अगर यहाँ लाल झण्डे की दाल नहीं गलती तो उन्हे खुद सोचना है की ऐसा क्यों हो रहा है?
सिख गुजरात में उपद्रव नहीं कर रहे. प्रेस गुजरात में नहीं जलाई गई. वैसे ही दंगो का इतिहास भी अखिल भारतीय है.
अंत में बता दूं यह कोई विचार नहीं है. कोई बात नहीं है, यह तो किसी के अनुसार लात है. क्योंकि सोचने समझने की क्षमता तो प्रभु ने उन्हे ही दी है.
बापू माफ करना मगर जब सरे-बजार पुछ ही लिया है तो बताना ही पड़ेगा। वरना इस प्रकार के फसाद में कौन पड़े.?
भाई बजारवाले, आपने जो टिप्पणीयाँ दी है उसमें आपने मेरे नाम का सन्धि-विच्छेद कमाल का किया है। नटराज को नट बना दिया। मगर यह केवल आपकी दुषीत मानसिकता ही दर्शाता है, जब और कुछ न बन सके तो विभिन्न प्रकार की मुखाकृतियाँ बना कर खिजाओ और मजे लो, नाम बिगाड़ना भी इनमें से एक है। जैसे आपको बजारवाला न कह कर बाजारू कहूँ, मगर मैं गिरा हुआ इंसान नहीं हूँ, इसलिए ऐसा नहीं कहूँगा।
आपने आगे लिखा है
अब रेल गाड़िया तो गुजरात में भी जलाई जाती है और लोग वहाँ भी मारे जाते हैं
.. अंतर इतना ही है की एक रोटी के लिए करता है और दूसरा धर्म के लिए , लगता है आपको
रोटी की ज़रूरत नही ..
लगता है कि शाखा वालो से आपको काफ़ी प्यार है नट राज जी महाराज
गुजरात में दारूबन्दी है, आपको कहीं भी दारू की दुकान नहीं दिखेगी। मगर अब कुछ छुट-छाट देनी की कोशिशे हो रही है। वैसे तो कहते है यहाँ माँगो उतनी मिलती है, मगर आम आदमी को पीनी हो तो कहाँ से खोजता फिरे? तो उसके पास एक ही रास्ता बचता है कि वह गाँधी बापू को कोसे न गाँधी गुजरात के होते न यहाँ दारू बन्दी होती। मगर लगता है, नियमो को कुछ हल्का किया जाएगा, जैसे अब डॉक्टर भी सर्टीफिकेट दे सकेंगे की मरीज के लिए स्वस्थ रहने के लिए दारू पीनी जरूरी है. और मरीज बे रोक टोक यम यम यम.... :)
Read more...नमस्कार बन्धूओं,
जय श्री कृष्ण.
मेरी हिन्दी अधिक अच्छी तो नहीं है, मगर आपके साथ रहते रहते जरूर सीख जाने की उम्मीद है.
ब्लोग के बारे में संजय भाई ने बताया और कुछ दिन ब्लोगस पढ़ने के बाद अपना ब्लोग बनाने का विचार किया है.
संजय भाई..... देख रहे हो? :) बना लिया ना अपने आप :)
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